Friday, November 13, 2009

चलो कुछ लिख ही देते हैं






मन परेशान है क्यो ? नही पता...हो जाता है कभी-कभी ...... लिखने से थोडा सुकून मिलता है इसलिए लिख लेते हैं। जब खुश होते है तो लिखते है .....जब दुखी होते और जब कन्फ्यूज़ होते है तब भी लिखते है।अच्छा साधन है मन के अंतर्द्वंद को वेब पेज पर छाप दो ....दुनिया बदले ना बदले, नेता सुधरे ना सुधरे, सामाजिक विकृतियाँ टस से मस हो ना हो, कोई दूर हो या पास आए, शेयर मार्केट में नर्मी हो या गर्मी .....मार्केट में नये प्रॉडक्ट का लॉंच हो या फिर बॉलीवुड की न्यू रिलीजस.......सब मिलेगा हम ब्लॉगगेर्स की दुनिया में आपको ........की फ़र्क पैंदा है । इस कुंठा को कहीं न कही तो निकालना ही है। कोई रूठे तो रूठे कोई छूटे तो छूटे। मन की बात कह दी ....पढने वालो ने टिपण्णी थपथपा दी .....जी हल्का हुआ ... किसी ने हमको पढ़ा /सुना और शायद समझा भी।


पर आज कोई भी टॉपिक नही समझ में आ रहा है.....ख्यालों ख्वाबों की दुनिया के बारे में बात करने का मन नही है......दिमाग़ है कि उसमे सवाल ही सवाल है.....जवाब बहुत ढूँढा कभी मिले ही नही... और नाहीं मिलने की उम्मीद है। किस मसले पर लिखे?


सुना है की भारत एक डेमॉक्रेटिक कंट्री है ........नेताओं को लगता है कि डेमॉक्रेसी जनता खुशी नही बल्कि मजबूरी है.......सुयोग्य उम्मीदवार पार्टी में शामिल नहीं होते या फिर किये नहीं जाते,अब गंदे लोगो से कम गंदो को चुनने का चुनौतीपूर्ण कार्य भी जनता को ही करना है। नेता जी को अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है. एक बार जीत कर मैदान में जो आये तो आगे- पीछे की सभी नस्लों का भविष्य सुधार देंगे।


इलेक्शन के समय एक -एक वोट की कीमत समझाई जाती है......करोड़ो खर्च हो जाते है प्रचार में....और लोग कन्विन्स भी होते है...........चले जाते है पूलिंग बूथ तक.........बटन दबाकर उंगली पर एक दाग लेकर चले आते है.......वही दाग भारतीय संविधान पर एक बड़ा धब्बा बनकर दिखने लगता है.......अब धब्बो की बात चली है तो कुछ धब्बे है जहन में हैं ...लिख ही देते है...........तहलका धब्बा, चारा धब्बा, ताज कॉरिडोर धब्बा और अभी हाल ही में हुआ ....मधु रूपी कोड़ा ......ब्रेकिंग न्यूज़ है भाई........पुराने धब्बे मिटे हैं क्या? जो ये मिटेगा ........अगली बार तो कॅबिनेट में आकर कोई बड़ी मिनिस्ट्री मिलेगी......पॉपुलर जो हो गये है.....कोई सर्फ एक्स्सेल है नही मार्केट में जो इन धब्बो को सॉफ करें..............अगर ये धब्बे कॉर्पोरेट हो गये तो हाल-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा? अर्.....रे राजठाकरे को कैसे भूल सकते है हम सब......भारतीय संविधान के साथ उनकी गुल्ली-डंडा खेलने के आदत पुरानी है .......और शानदार मोड़ तो तब है जब केंद्र कोई ठोस कदम न उठा कर ...एक औपचारिकता पूरी करता है। यू० पी० की चिंता करने वाले रोयल ब्लड राहुल जी चुप्पी साध लेते है.


छोड़ो जी.......क्या करना है हमको...बस अभी याद आ गया... एक कामन मैन है ....उसी की तरह पैदा हुए है .......जी रहे है और मर भी जाएगे.... ये सब लिख दिया ताकि लोगों को लगे हमको भी थोडी चिंता है ... देश की, समाज की। कुछ कर पा नहीं रहे है, छटपटा रहे है ......तो क्या करे लिख ही रहे है. जब कॉलेज में थे तब दोस्तों के साथ बातों का दौर चलता तो ऐसा लगता कि हम में से कुछ तो सिस्टम बदलने के लिए ही पैदा हुए है ...... सिस्टम तो जस का तस रहा ....... हम सब का ही सिस्टम बदल गया......जिंदगी की जरूरतों में.



ये दुनिया वैसी क्यो नही है जैसी हम चाहते है....लोग वैसे क्यो नही होते जैसे दिखते है ? क्यो लोग सच बोलने से कतराते है..? क्यो झूठी ज़िंदगी जी कर गौरान्वित होते है? अर् रररर रे कुछ तो ऐसे है जो आप से सीख कर आप ही कोसिखाते है. खुल कर तारीफ़ भी नहीं कर सकते और विरोध भी..... और दावा सुनिए इनका ये तो बिल्कुल सीधे साफ़ सच्चे है ........चलते- चलते कुछ सवालों के बीच छोड़े जा रहे है आपको... जो जवाब मिले तो बताइयेगा हमको भी .




क्यो कुछ सवालों के जवाब नही होते?
क्यो लोग नेकदिल और साफ़ नही होते?
क्यो चेहरों पर मुखौटे होते है?
कुछ तो हमारे अपने ही झूठे होते है?
क्यो कुछ रिश्ते जीवन पर बोझ बन जाते है?
क्यो कुछ लोग बिन रिश्ते साथ निभाते है?
क्यों कोई बिन स्वार्थ कुछ नही करता?
क्यों कोई सम्बन्ध निस्वार्थ नही बनता?
क्यों कोई बेमतलब अच्छा लगता है?
इतना के उसका झूठ भी सच्चा लगता है.....
क्यो छलरहित और अच्छे होने पर धोखा मिलता है?
क्यो ज़िंदगी में पैसा भगवान बन जाता है?
क्यों पैसे के पीछे इंसान बेईमान बन जाता है?
क्यो मज़हब के नाम पर लड़ाई होती है?
क्यो भ्रष्ट-गंदे लोगो के हाथ सत्ता होती है ?

क्यो नही कोईदुनिया में सच्चा मिलता है ?
क्यो कुछ लोगों के शब्दो में मर्यादायें नही है?
क्यो कुछ लोगों के आचरण में सीमायें नही है?
क्यो नही हम सब बदल सकते?
एक सच्चा अच्छा संसार रच सकते........
क्या सच के साथ जीना वाकई मुश्किल है?
तो फिर सच क्या है ?
जीवन
मृतु
या फिर
कुछ और ?


Sunday, September 20, 2009

स्त्री पूजा अब और नहीं


आजकल माहौल बहुत खुशनुमा है बाज़ारों में रौनक है त्योहारों का स्वागत करने को सभी बेताब है, घरों में कीर्तन, मंदिरों में लगातार बजते घंटे , हवन, यज्ञ, जगराते माँ शेरावाली का गुणगान, पंडालों में माँ की भव्य मूर्तिया और उनमें उमड़ी भीड़, इंसान को उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी से कुछ अलग अनुभूति कराते ........और हाँ इस सबके बीच गरबा....जिसकी चर्चा के बिना नवरात्रि का पर्व अधूरा है। सब कुछ बहुत अच्छा है मन में पवित्र भाव और कुछ पल अध्यात्म की ओर बढ़ते कदम मन को सुकून दे जाते।

हमारे शास्त्रों में स्रष्टि निर्माण के पूर्व यदि किसी का अस्तित्व बताया गया है तो वो है महाशक्ति महामाया माँ जगदम्बे। जिनके कारण ही ब्रह्म, विष्णु, महेश का अस्तित्व रहा है और जिसे युगों- युगों से इस देश में हम पूजते आ रहे है। लोग अपने घरो में माता की स्थापना करते है नौ दिन नियम, संयम के साथ उनका पूजन, आवाहन यशोगान करते है, अष्टमी में कन्याओ को बुलाकर उनका पूजन कर उन्हें भोजन कर यथाशक्ति दक्षिणा दे उनका आर्शीवाद प्राप्त करते है।

सच बोलू तो हमें माँ की पूजा, यज्ञ , हवन, मंत्र, कन्या पूजन इत्यादि ढकोसला लगता है .....
अरे जो जो देश सदियों से स्त्री को पूजता रहा है उस देश में स्त्री को पुरुषों के बराबर स्थान क्यों नहीं?

क्यों नहीं आज एक औरत आजाद है देर रात्रि स्वतंत्रता से आने - जाने के लिए?

क्यों
लड़कियों को संसार में आने से पहले ही मार दिया जाता है?

क्यों
सिर्फ कन्या का पिता ही विवाह में गृहस्थी के सामान देने के लिए बाध्य है जबकि दोनों पक्ष ही नव दम्पति को दांपत्य जीवन में प्रवेश करवाते है ?

क्यों
एक स्त्री को सिर्फ एक स्त्री के रूप में देख कर बहु- बेटी के रूप में देख विभाजित किया जाता है?





यूँ तो हमारी सरकारों ने कागजी रूपों में स्त्री की दशा सुधरने के लिए बहुत प्रयास किया है, दहेज़ अधिनियम बना, घरेलु हिंसा अधिनियम बना। पर क्या मात्र अधिनियम बना देने से सामाजिक परिवेश या सोच को बदला जा सकता है ? कानून एक दंडविधान प्रक्रिया है। हमें नहीं लगता कि एक मानसिकता या सोच को बदलने के लिए कोई अधिनियम कारगर होता है अगर होता तो स्त्री के प्रति होने वाले अपराधो कि संख्या में साल दर साल कमी होती जाती ...........

केवल हम, आप, परिवार समाज मिलकर इस दोहरी मानसिकता से बाहर आ सकता है बस जरूरत है दृढ इक्षाशक्ति की। एक परंपरागत सोच को बदलने की ................

. अपनी बेटियों को संसार में आने देउन्हें समान अवसर देंउन्हें थोड़े ज्यादा, प्यार दुलार देख-रेख की जरूरत पड़ेगी..तो कर लीजिये इसके लिए खुद को तैयारएक प्यारी सी बेटी के लिए इतना नहीं कर सकते आप?

. पुरुषों से यही अपील है कि दुल्हों की मण्डी में अपनी बोली मत लगवाइए अरे खुद को बेचने में थोडी तो शर्म करिए

. स्त्रिया भी स्त्रियों को मान दे, प्यार दे, सम्मान दे तथा घर और समाज में होने वाले अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाये

.अपनी बेटियों को स्वावलंबी , निर्भीक और मजबूत बनने में मदद करें

जिस दिन हमारी सोच में परिवर्तन आएगा और हम स्त्रियों को कमजोर नहीं बल्कि ताकतवर बनाकर बराबरी का मुकाम देंगे वही सच्चे अर्थो में देवी पूजा होगी और माँ जगदम्बे भी प्रसन्न होगी

( कृपया दोहरी मानसिकता , विचारधारा और कर्मो में दोगलापन दिखलाने वाले लोग इस लेख पर प्रतिक्रिया व्यक्त करेंइस लेख का आशय लेखन कौशल की प्रशंसा पाना नहीं है ...... यदि किसी एक व्यक्ति की भी इसे पढ़ कर सोच में परिवतन होता है और वो इसे अपने जीवन में क्रियान्वित करता है तो हम समझेंगे की हमारा छोटा सा प्रयास सार्थक हुआ। )


Friday, August 14, 2009

"देश प्रेम का कर्त्तव्य निभा दिया मैंने "


देश ने आज़ादी के ६२ वर्ष पूरे कर लियेहर जगह और हर कोई आजादी का जश्न अपने - अपने तरीका से मना रहा हैं ,टेलीविज़न पर इन बीते ६२ वर्षो के विकास, आदमी के नैतिक और चारित्रिक पतन पर सवाल उठाए जा रहे हैं कुछ गणमान्य व्यक्तियों को बुलाकर चर्चा भी की जायेगीरेडियो में आज पूरे दिन देश भक्ति से ओ़त - प्रोत गाने सुनाये जा रहे है , जनता को जोड़ने के लिये कुछ कांटेस्ट भी कराये जा रहे है समाचार पत्र आज़ादी के रंग में रंगे हैकुछ लोग छुट्टी का दिन समझ कोई मूवी देख लेंगे , शौपिंग कर लेंगे , कुछ पेंडिंग जॉब्स पूरे होंगेब्लोगर्स अपना ज्ञान अपनी सोच अपने ब्लॉग पर छाप देंगे , जैसे हमने किया है अमर शहीदों की थोडी - बहुत चर्चाये होंगी लीजिये शाम हो गई तारीख गुज़र गई, एक दिन ख़त्म जिंदगी फ़िर पुरानी रफ़्तार पर दौडेगी कल सेएक बार फ़िर आएगा ऐसा ही माहौल २६ जनवरी को ...... फ़िर हम इस परम्परा को दोहरा लेंगे


यही है आज़ादी के मायने ........बेचारे हमारे देश के नेता, बुरे दिन चल रहे है उनके .....जिसको देखो उन्हें कोसने से बाज नही आता... और हो भी क्यो राजनीति की भावना जो बदल गई है.......किसी नेता पर कोई चुटकुला किसी मसखरे ने बना दिया आकर उसे लाफ्टर शो पर सुना दिया जज हँसे जनता हँसी चलिए इसी बहाने कॉमेडियन की जेब भरी नेता जी कुछ तो काम आए त्याग या फिर देशप्रेम के भाव ही कहाँ है राजनीति मेंराजनीति तो एक करियर है और वो भी ऐसा जिसमे पीढिया पलेपर क्यो करू मै ये बातें..... जिस बहस का कोई परिणाम ही नही


सुना है और पढ़ा भी कि आजादी की लडाई में पत्रकारों की बड़ी भूमिका रही है... कलम की ताकत ने भी अंग्रेजो का चैन छीना था..... उन दिनों प्रिंटिग प्रेस पर अंग्रेज सरकार छापे डालती थी, यही एक मात्र साधन था जनता से जुड़ने कापर वो जाबाज़ चोरी- छिपे कैसे भी, जान जोखिम में डाल कर क्रांतिकारियों और नरम दल के विचारो को जनता तक लातेएक सवाल है जहन में..... क्या इमानदारी से किए गए पत्रकारिता के पेशे में इतनी कमाई है कि कोई पत्रकार अपना न्यूज़ चैनल लॉन्च कर ले? ये वही चैनल्स है जो पूरे दिन किसी एक पार्टी के नेता की ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर टेलीकास्ट करते है और शाम को उन्ही के साथ डिनर करते है...... आफ्टरआल उनके करियर का भी तो सवाल है

अब बात कर लेते है जज़्बातों की, कवियों की, रचनाकारों की....... "शब्द असर करते है, इनकी ताकत से इन्कार नही किया जा सकता , ये प्रेरक है और मानसिक पटल पर गहरा असर डालते है आज़ादी के गीतों, कविताओ में अपनी पसंद के कुछ गीत उद्ध्रत करना चाहेंगे हम

सबसे पहले राम प्रसाद बिस्मिल

"यूं खडा मकतल में कातिल कह रहा है बार बार,
क्या तमन्ना - -शहादत भी किसी के दिल में है ,
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्किलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको आज ,
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें हो खून - -जूनून
तूफानों से क्या लड़े जो कश्ती - -साहिल में है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है .
देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है "
...............................................................................................................................................................................
कवि प्रदीप
" मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -
जो लौट के घर आये -

कवि प्रदीप ने बहुत सारे देश भक्ति के गीत देश को दिए, सिनेमा में इनका प्रदापर्ण भी देश भक्ति गीत से ही हुआ था।
.........................................................................................................................................................................
जय शंकर प्रसाद -

हिमाद्रि तुंग शृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुज्ज्वला

स्वतंत्रता पुकारती

'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'


असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ

विकीर्ण दिव्य दाह-सी

सपूत मातृभूमि के-

रुको न शूर साहसी !

अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,

प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !

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और अब आज के कवि की रचना ... जो युवाओ में काफी लोकप्रिय है अपनी श्रृंगार रस की कविताओ के लिये....पर इनकी भी लेखनी ने जोर मारा.... जब देश के दुश्मन ने भारत माँ को छलनी करना चाहा, तब भला एक कवि की लेखनी नायिका के सौंदर्य का वर्णन, मिलन और विरह पर कैसे गीत लिखती ............ .

डॉ कुमार विश्वास

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा
माँ वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई
बहन जिसने सावनों मे भर लिया पतझड स्वँय ही
हाथ ना उलझ जाऐ, कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियाँ जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी
'पिता तुम पर गर्व है ' चुपचाप जाकर बोल आईं
प्रिया जिसकी चूडियों मे सितारे से टूटतें हैं
माँग का सिंदूर देकर जो सितारें मोल लाई
है नमन उस देहरी जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यऔवन कै सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...


................................................................................................................................................
अब चलते- चलते कुछ पंक्तिया मेरी तरफ़ से ----

आँखों में कुछ ख्वाब है,
और दिल में शोला जल रहा,
कुछ कर गुजरने के आस में लहू है उबल रहा ,
सीने पे खा के गोली दुश्मन को है रुखसत किया,
क्या करे अब हम के दुश्मन घर में ही है पल रहा


कहलाते है निगेबाह जो मुल्क को है वो लूटते ,
है नुमाइंदे जनता के जमूरियत से खेलते ,
मुल्क के खैरखवा से अस्मत आज खतरे में है ,
गद्दारों को सबक सिखाने भगत सिंह घर -घर में है

.............................................................


हम है आज के युवा
हमें वक़्त बदलना आता है,
भ्रष्टाचार, आतंकवाद और कुर्सीवाद से निपटना आता है,
" संसद को अपनी जागीर समझने वालो,
सुधर जाओ, वरना हमको
व्यवस्था तंत्र बदलना आता है"
"प्रिया "


चलिए .... ब्लॉग्गिंग करके हमने भी कर्तव्य पूरा कर दिया। एक आत्म संतोष है कि कुछ योगदान तो हमने भी किया.....अब फ़िर इंतज़ार करते है गणतंत्र दिवस का।


Thursday, July 16, 2009

एक रूहानी रिश्ता - अमृता / इमरोज़

" अमृता प्रीतम" एक नाम संवेदना का, जज्बातों का, हालातों का , प्रेम का, तजुर्बे का, गाथाओ का, शायरियों का, कविताओ का, उपन्यासों का, चर्चाओ का, आलोचनाओ का, प्रशंसको का और भी न जाने कितनी .....कही- अनकही, बूझी - अनबूझी, कुछ खामोशी- कभी शोर, कभी शब्द तो कभी रंग .......और न जाने क्या - क्या...... सम्पूर्ण जलधि के रत्न समाये है इस नाम में । शायद जीवनरुपी मदिराचल पर्वत को मथने के बाद जो अमृत, अमृता जी की लेखनी से निकला .....उसने इंसानी संवेदनाऔर भावनाओ को जीवित रखा।

ब्लॉग्गिंग की दुनिया में कदम रखने के साथ ही ...... अमृता जी के बारे में पढ़ा, सुना, जाना और समझा भी। बहुत से ब्लोगर ने फिर चाहे वो हिन्दी से जुड़े हो या अंग्रेजी से उनके जीवन संघर्ष के बारे में लिखा...... तो किसी ने उनकी कविताओ, रचनाओ का ब्लॉग बना उनके प्रति अपने प्रेम का समर्पण किया ।

मुझे अमृता जी के स्वतंत्र विचारो और इमरोज़ जी के अमृता जी के प्रति निष्काम स्नेह ने बहुत प्रभावित किया। .......... अमृता जी की कलम ने मेरी रक्तवाहिनियों में हरकत की तो इमरोज़ के व्यक्तित्व ने दिमाग की नसों को झकझोर कर रख दिया।

इन दोनों का ऐसा असर हुआ की मेरी कलम ने भी हरकत की......... हर हर्फ़ दिल से निकला लफ्ज़ -लफ्ज़ बन कागज़ पर कुछ यूँ बिखरा ...... बरसो कि ये कथा फ़कत पन्नो में सिमट गई .....तब कही जाकर होश आया कि अरे! मैं भी इनपर कुछ लिख गई

अपनी ये कृति इमरोज़ जी को भेजी ....उन्हें तो बहुत पसंद आई......मिलना नही हो पाया उनसे... बस फोन पर ही बात हुई। वो बोले " आप लिखती है ..... जानकर अच्छा लगा..... अगर अमृता पर कुछ लिखो तो मुझे भेजना जरूर।" इमरोज़ जी का आर्शीवाद तो प्राप्त हो चुका हैं। अगर आप लोगों का भी मिल जाए ...... तो बात बन जाए :-)

एक रूहानी रिश्ता - अमृता / इमरोज़


जिसकी शायरी से आता है रूह को सूकून ,
जिसकी हर नज्म में रब बसता हैं,
जिसकी सीधी , सच्ची गहरी बातों से ये जहान खिल उठता हैं,
जिसके नगमों में रब जैसा सच्चा प्यार झलकता हैं,


जिसने
पाकीज़गी से मोहब्बत को जिया...
और
दुनियावी बन्धनों से दूर रखा,
जिसने मोहब्बत को रिश्तों
के इल्जाम और शर्तो के बिना निभाया
जीवन की अंतिम
सांस तक ....


उसकी हर रचना मोहब्बत के इतिहास में अमृत की एक बूँद हैं,
जमाने की अड़चने उसकी तेज परवाज को रोक सकी,
वो खामोश रही पर लड़ी, हर रोज़ , हर घडी,
उसका हथियार भी निराला , अनूठा था, बिलकुल उसकी तरह,


एक हाथ में कलम और दूजे में कुछ खाली पन्ने
बस उन्हें ही लेकर चल पड़ी दुनिया को एक नया
नजरिया देने,
काम मुश्किल था, पर बखूबी निभाया उसने ,
इमरोज़ जो साथ
थे सपनो को रंग देने,


उसने ख्यालों को
पन्नों पर बिखेर दिया ,
इमरोज़ ने हाथ पढ़ा कर उन्हें कैनवास पर उतार दिया,
बस हर लम्हा एक दास्ताँ बनती गयी,
कभी कविताओ में तो कभी रंगों में ढलती गई।



अब ज़माने को फक्र था दोनों पर ,
अजीब हैं, पर दुनिया ने इनामों से नवाजा उन्हे,
ऐसा तो होना ही था...
सूरज चढ़ रहा था...
किरणे फैल रही थी...
संसार रोशन हो रहा था ...


अब दो सूरज आसमा में पूरे शबाब पर संसार को मोहब्बत सिखा रहे थे,
जिनकी गर्माहट से धरती पर प्यार के अंकुर फूटने लगे थे ,
नमूना बन गए थे दोनों आने वाली नस्लों के लिए ,
सारी मिसाले पुरानी हो चुकी, बेशर्त रिश्ते की ये एक अनूठी गाथा हैं ,


जिसमे सिर्फ एहसास हैं, आपसी समझ हैं...
और कोई सांसारिक बंधन नहीं
शायद इसी को कहते हैं रुहो का रिश्ता ....


नई पीढी को अपना नायक मिल चुका था ...
एक कहानी का आगाज़ हो चुका था अतीत में,
जिसे बुना था दोनों ने मिलकर, रंगों और स्याही के ताने बाने से,
ज़माना फितरत से मजबूर उगते सूरज को सलाम कर रहा था.


पढ़ने वालों ने उसकी हर रचना को सराहा,
शिद्दत से उसके प्यार को महसूस किया,
या यूँ कह ले अमृता की नज़्म की हर बूँद का अमृत पान किया ,
पर वो बावरी तो कुछ और ही बात कहती हैं


एक जन्म में अधूरे छुटे काम को ,
वापस आकर पूरा करने के साथ ही विदा ली उसने,
धरा छोड़ कर भी चैन कहा हैं उसको....
वहां से भी आवाज़ लगाती हैं...

के " मैं तैनू फेर मिलांगी"


Saturday, May 2, 2009

एक मुलाकात डॉ. कुमार विश्वास के साथ








कहते हैं कवि बनने की पहली शर्त इंसान होना हैं। कविता कवि के उन
क्षणों के उपलब्धि होती हैं, जब वो अपने आप में नही होता। इसीलिए कवि के चेतनास्तर तक उठे बिना समझी भी नही जा सकती।



आज जिनके बारे में बात करने जा रही हूँ, उन्होंने देश में ही नही वरन विदेश में भी अपनी पहचान बनाई हैं। लोग सिर्फ़ उनको सुनते ही नही बल्कि उनका अनुसरण भी करते हैं। जी हैं वो हैं हम सबके प्यारे डॉ० कुमार विश्वास :-)




डॉ0 कुमार विश्वास का नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं हैं। युवा दिलों कि धड़कन कहा जाये तो अतिशयोक्ति होगी, वो बहुत बड़े फनकार हैं, जब अपनी कविताओ का पाठ करते हैं तो सीधे श्रोताओ कि नब्ज को टटोलते हुऐरूह को छु लेते हैं। उनकी सीधी , सरल भाषा कविता का मार्मिक व्याख्यान ही नहीं करती बल्कि गुदगुदातीटिप्पणियां लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट खींच देती हैं। शायद यही वजह है कि जहाँ एक तरफ आज का युवाकारपोरेट वर्ल्ड के उतार - चढाव से जूझ रहा हैं, ......... पाश्चात्य संस्कृति में रचा बसा, फिर भी हिंदी कविता कोजीता हैं, सुनता हैं, सराहता हैं। आखिर कुछ तो बात हैं आज कि पीढी में .............. स्पष्ट हैं प्यार और भावना कीभाषा कौन नहीं समझता। शायद यही वजह है कि डॉ0 विश्वास के जुदा अंदाज ने नई पीढी को अपनी तरफआकर्षित किया हैं

कभी डॉ. विश्वास से मेरी मुलाकात होगी और उनसे मिलकर मेरे लेखन का शौक फिर से कुलांचे मारने लगेगा ..... ऐसा भी नहीं सोचा था कभी..

पर यही तो जिंदगी हैं ....हमेशा वो देती हैं जिसकी आपको उम्मीद हो....... मेरी और उनकी मुलाकात का वाकयाहैं बहुत दिलचस्प .....मेरे लिए तो वो एक अविस्मरणीय क्षण हैं .... सोचती हूँ क्यों इस किस्से से आपको रूबरूकरवाया जाये।

दरअसल डॉ0 कुमार विश्वास नाम के कोई कवि भी हैं, इसका ज्ञान करीब ढाई साल पहले ही हुआ। एक दिनपरिवार के साथ टी० वी० पर कवि सम्मलेन देखा, उसमे डॉ० विश्वास को उनकी प्रसिद्ध रचना " कोई दीवाना कहताहैं '
सुनाते हुए देखा ..........कविता ने तो स्तब्ध करके रख दिया हैं ... याद हैं पापा कि वो टिपण्णी " ये शख्श बहुतआगे जायेगा,बिलकुल गोपाल दास नीरज जैसे हैं इसके तेवर " बस प्रोग्राम ख़त्म, बात ख़त्म कविता के कुछ अंशदीमाग में फीड हो गए थे तो गुनगुना लेती थी कभी कभी।

अक्सर मेरे सहकर्मी पूछते ..... ये
क्या गुनगुनाती रहती हो ? मैं बस मुस्कुरा देती। एक दिन बताया अपनी सहेलीकी ...... उसने मजाक- मजाक में नेट सर्फिंग शुरू की और मुझे डॉ० विश्वास का -मेल आई डी सर्च करके दे दिया


बात शायद जुलाई या अगस्त २००८ कि हैं जब मेरी एक सहेली ने उनका -मेल आई।डी दिया था मुझे। मैंने भीझट से इनविटेशन भेजा और उधर से स्वीकृति भी मिल गई ........मैंने अपना परिचय दिया .......पर उन्होंने ज्यादाबात ही नहीं की। मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनके जैसा मसरूफ शख्स इन्टरनेट पर यूजर हो सकता हैं।मैंने उनसे काफी बात करने कि कोशिश की, पर उधर से किसी भी बात का ठीक जवाब ही नहीं आया, मैंने कहाकवि हैं तो दो - चार पंक्तिया अपनी कविता की ही लिख दे ताकि यकीन हो जाये कि आप वही हैं जिन्हें हम समझरहे हैंI उन्होंने मेरे इस निवेदन को भी ठुकरा दिया ..... मैंने भी सोचा की कवि होकर कविता से परहेज .... यकीननये शख्स डॉ० विश्वास नहीं हो सकता .......ये ईमेल आई० डी० नकली हैं और कोई डॉ० साहेब का नाम इस्तेमालकरके लोगों को बेवकूफ बना रहा हैं। बस मैंने दो - चार उलटी - सीधी बातें लिख कर भेज दी उधर से जवाब आयाअगर नहीं यकीन हैं तो ब्लाक कर दीजिए मैंने भी बिना देर लगाये तुंरत ब्लाक कर दिया.... बहुत गुस्सा आयाखुद पर उस दिन कि कैसे कर बैठी इतनी बड़ी बेवकूफी।




जिंदगी अपनी रफ़्तार से चल रही थी इस बात तो करीब चार माह बीत चुके थे मेरे दिमाग से ये वाकया मिट
चुका था ..... एक दिन फुरसत के क्षण, मैं एक सोशल वेबसाइट विजिट कर रही थी .............अचानक नज़र डॉ कुमार विश्वास नाम के प्रोफाइल पर नज़र गई, तुंरत विजिट किया प्रोफाइल ........ आश्चर्य हुआ वो तो सचमुच मेंकवि डॉ0 कुमार विश्वास थे ....मैंने झट से ब्लाक आई० डी० को ओपन किया दोपहर में प्रतिक्रिया भी आई उधर सेमैंने याद दिलाया उनको अपने बारे में और पूर्व व्यवहार के लिए माफ़ी में मांगी।


एक बार पता चला कि किसी प्रोग्राम के सिलसिले में उन्हें लखनऊ आना हैं। सोचा रहे हैं तो क्यों मुलाकातकी जाये , बहुत खुश थी मैं, पर थोडा सा डर भी था अंदर........ इस तरह किसी से मिली जो नहीं थी कभी ........ मैंनेअपनी इस दुविधा को ऋचा (मेरी सहेली ) से बताया। हमने डिसाइड किया कि हम दोनों साथ जायेगे उनसे मिलने।


अगले दिन सुबह पता चला कि उनका प्रोग्राम तो रात का था और दिन में बजे शताब्दी से वापस दिल्ली जा रहे हैं।
.... हम ऑफिस में थे तो छुट्टी के लिए कोई सॉलिड वजह होनी चाहिए। एच० आर० से मिलकर किसी तरह छुट्टीमिली। अब कवायत शुरू हुई कि कवि से मिलने जा रहे हैं, तो खाली हाथ तो नहीं जाना चाहिए। हम दोनों नेडिसाइड किया कि माँ सरस्वती के उपासक को क्यों वीणावादिनी ही भेंट की जाये। बस झटपट गिफ्ट शॉप से माँसरस्वती की प्रतिमा ली और चल पड़े स्टेशन कि ओर

स्टेशन पर पहुचे तो शताब्दी प्लेटफोर्म पर खड़ी थी, ऋचा ने प्लेटफोर्म टिकेट लिया
और फिर हमने रुख किया शताब्दी की ओर। हमने पता किया था कि एक्जीक्यूटिव क्लास में हैं उनका रिज़र्वेशन। निसंदेह इंटेलिजेंट तो मैं हूँही.............एक्जीक्यूटिव क्लास इंजन के पास होता हैं और हम चले गए विपरीत दिशा में. ...... बाई गौड.... पूरे दोचक्कर लगाये थे ट्रेन के ........ऊपर से ट्रेन बार - बार सीटी बजाकर ये बता रही थी कि स्टेशन से रुखसती का समय रहा हैं ...धड़कने बढ़ रही थी हमारी ...... कितना प्रयत्न किया था हम दोनों ने .... वो ऑफिस में बहाना बनाना..... .कम टाइम में गिफ्ट की शौपिंग ...... चिलचिलाती धूप में स्कूटी चलाकर वो स्टेशन पर पहुचना ......... ट्रेन कीपरिक्रमा और फिर मुलाकात हो पाना ............. आखिरकार मिल ही गए कोच के बाहर खड़े हुए थे। थके- हारे हमदोनों बेचारे पहुँच गए.... डॉ0 विश्वास के सामने ......... बहुत खुश थे हम दोनों. सोचा तो था .....कि पूरा इंटरव्यू लेंगेकई सवाल थे जहन में पूछने के लिए .....पर शायद उनसे मिलने कि ख़ुशी इतनी ज्यादा थी ॥कि दिमाग सेसवाल छूमंतर हो गए। .... वक़्त भी कम था हमारे पास ........हमने जल्दी से गिफ्ट जो जल्दबाजी में ख़रीदा था, उनके हाथ में दे दिया, अपने सामने ही खोलने को बोला ..... माँ सरस्वती कि प्रतिमा को देख कर वो भी बहुत खुश थे बोलेकि मैं इसे स्टडी में रखूंगा।

उनके लिए ये घटना कोई बड़ी बात नहीं हैं।
क्योकि उनके पास हमारे जैसे हजारों की भीड़ हैं। रोजाना कही कहीउनका शो रहता हैं .... और रोज़ कुछ कुछ प्रशंसको का नाम उनके साथ जुड़ ही जाता हैं। कुछ पलों की मुलाकातसे किसी के बारे में कुछ नहीं बताया जा सकता पर चूँकि आज के दौर के वो एक प्रसिद्ध कवि हैं और युवाओ मेंकाफी लोकप्रिय भी। जब कभी उनका कोई विडियो देखती तो सोचा करती थी ..... काश ! एक बार मुलाकात जो जाए तो क्या बात हो

एक बात जिसने काफी प्रभावित किया वो ये की हमें उनसे मिलकर ऐसा लगा ही नहीं कि मैं " डॉ० कुमार विश्वाससे मिल रही हूँ। बल्कि ऐसा लगा कि अपने किसी रिश्तेदार को स्टेशन पर सी- ऑफ करने आये हैं।
डॉ कुमार विश्वास हमसे मिलकर प्रसन्न हुए या नही , ये तो नही जानती पर . . हमारे लिए तो कुछ ऐसा था जैसे " चाँद किजिद करने वाले बच्चे को सच-मुच चंदा मामा ही हाथ लग गए हो"

डॉ साहेब से मुलाकात का ये अच्छा अनुभव रहा ...... जिंदगी में कुछ कुछ बदलता रहना चाहिए वरना जीवनकि गति ही रुक जाती हैं ........रुकी हुई जिंदगी सुस्त और नीरस हो जाती हैं ........ अब मुझे इंतज़ार हैं .... जिंदगीकि एक नई खोज का ....एक और रुचिकर अनुभव का ............शायद अगली मुलाकात फिर किस ख़ास शख्सियतसे हो ......

इस छोटी से मुलाकात ने मेरे जीवन को नई दिशा दी. मेरी कलम जिसने शायद चलना ही छोड़ दिया था ... उसेगतिमान बना दिया डॉ० विश्वास ने। ऐसे प्रेरक व्यक्तित्व के प्रति आदर के भाव क्यों हो...........


विश्वास सर और उनकी कविताओं से प्रभावित होकर.......हमने भी शब्दों से खेलने की कोशिश की! इसलिए मेरी येरचना उन्ही को समर्पित हैं .........



माँ भारती के अनन्य उपासक,
भगवती सरस्वती को काव्यांजलि अर्पित करने वाले,
आपके व्यक्तित्व से तो जग हिला हैं,
कवियों में होता न कोई छोटा, न बड़ा हैं



नहीं चाहती कि तारीफ में कुछ शब्द कहूं मैं,
क्यों आदि युग के कवियों कि राह चलू मैं ,
आप कोई राजा या नेता नहीं हैं,
सत्ता के शिखर पर आप बैठे नहीं हैं ।



मुझे आपसे कोई भौतिक लालच नहीं हैं,
लेन-देन का अपना कोई रिश्ता नहीं हैं,
हम दोनों अनजान एक - दूजे से हैं,
हाल ही में जाना कि आप पारस से हैं।



बस एक बार आपकी एक कविता यू ही हाथ लग गई,
हाथ क्या लगी, वो तो जैसे रोम - रोम में बस गयी,
तभी एक नए रिश्ते का सर्जन हुआ था,
कवि और पाठक का नामकरण हुआ था



आप लिखते गए मैं पढ़ती गई, सुनती गई,
भूरि- भूरि प्रशंसा करती गई ,
नहीं चाहा प्रशंसा आप पर जाहिर करू मैं,
क्यों बेवजह कविता लिखूं - तारीफ करुँ मैं,



पर आपकी नज्मों और अंदाज़ - ए - बयां ने बजबूर किया हैं,
वरना हमने भी कभी वक़्त जाया नहीं किया हैं,
क्यों लिखा और सुनाया ऐसा कि रूह तक मचल गयी,
कलम थिरक गई , और मेरी लेखनी कविता में ढल गई ।



विश्वास करो मेरा , इसमें कुसूर मेरा नहीं हैं,
ये कलम निर्भय , स्वच्छंद तहरीर पर अड़ी हैं,
कुछ पलों की मुलाकात पर इसने दास्ताँ गढ़ी हैं ,
और मैं मजबूर बहुत बस इसके हुक्म पर चली हूँ ।



कुछ कम - ज्यादा होगा, तो दोष मेरा न होगा ,
मान - सम्मान का इल्जाम मुझ पर न होगा,
मैं तो बस साधन मात्र हूँ,
इसकी स्थिरता को गतिमान बनाने का पुण्य आप पर होगा।



आपके लेखन को किसी की नज़र न लगे ,
आपको हिंदी साहित्य में नया शिखर मिले
अंग्रजी के जाल में भटके हुओ को हिंदी साहित्य में वापस लाना,
ऐसा चुम्बकत्व तो किसी नारी के सौन्दर्य में न होगा।



कही मेरी इन बातों से गौरान्वित तो नहीं महसूस करोगे
डरती हूँ, कही गुरूर कि सीढ़ी तो नहीं चदोगे,
गर ऐसे ही सादगी, सहजता, सहृदयता से चलते रहोगे,
देते हैं दुआ आज आपको, तूफानो को चीर कर आगे बढोगे।




इस लेख पर आप सभी की प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेग।