Thursday, July 16, 2009

एक रूहानी रिश्ता - अमृता / इमरोज़

" अमृता प्रीतम" एक नाम संवेदना का, जज्बातों का, हालातों का , प्रेम का, तजुर्बे का, गाथाओ का, शायरियों का, कविताओ का, उपन्यासों का, चर्चाओ का, आलोचनाओ का, प्रशंसको का और भी न जाने कितनी .....कही- अनकही, बूझी - अनबूझी, कुछ खामोशी- कभी शोर, कभी शब्द तो कभी रंग .......और न जाने क्या - क्या...... सम्पूर्ण जलधि के रत्न समाये है इस नाम में । शायद जीवनरुपी मदिराचल पर्वत को मथने के बाद जो अमृत, अमृता जी की लेखनी से निकला .....उसने इंसानी संवेदनाऔर भावनाओ को जीवित रखा।

ब्लॉग्गिंग की दुनिया में कदम रखने के साथ ही ...... अमृता जी के बारे में पढ़ा, सुना, जाना और समझा भी। बहुत से ब्लोगर ने फिर चाहे वो हिन्दी से जुड़े हो या अंग्रेजी से उनके जीवन संघर्ष के बारे में लिखा...... तो किसी ने उनकी कविताओ, रचनाओ का ब्लॉग बना उनके प्रति अपने प्रेम का समर्पण किया ।

मुझे अमृता जी के स्वतंत्र विचारो और इमरोज़ जी के अमृता जी के प्रति निष्काम स्नेह ने बहुत प्रभावित किया। .......... अमृता जी की कलम ने मेरी रक्तवाहिनियों में हरकत की तो इमरोज़ के व्यक्तित्व ने दिमाग की नसों को झकझोर कर रख दिया।

इन दोनों का ऐसा असर हुआ की मेरी कलम ने भी हरकत की......... हर हर्फ़ दिल से निकला लफ्ज़ -लफ्ज़ बन कागज़ पर कुछ यूँ बिखरा ...... बरसो कि ये कथा फ़कत पन्नो में सिमट गई .....तब कही जाकर होश आया कि अरे! मैं भी इनपर कुछ लिख गई

अपनी ये कृति इमरोज़ जी को भेजी ....उन्हें तो बहुत पसंद आई......मिलना नही हो पाया उनसे... बस फोन पर ही बात हुई। वो बोले " आप लिखती है ..... जानकर अच्छा लगा..... अगर अमृता पर कुछ लिखो तो मुझे भेजना जरूर।" इमरोज़ जी का आर्शीवाद तो प्राप्त हो चुका हैं। अगर आप लोगों का भी मिल जाए ...... तो बात बन जाए :-)

एक रूहानी रिश्ता - अमृता / इमरोज़


जिसकी शायरी से आता है रूह को सूकून ,
जिसकी हर नज्म में रब बसता हैं,
जिसकी सीधी , सच्ची गहरी बातों से ये जहान खिल उठता हैं,
जिसके नगमों में रब जैसा सच्चा प्यार झलकता हैं,


जिसने
पाकीज़गी से मोहब्बत को जिया...
और
दुनियावी बन्धनों से दूर रखा,
जिसने मोहब्बत को रिश्तों
के इल्जाम और शर्तो के बिना निभाया
जीवन की अंतिम
सांस तक ....


उसकी हर रचना मोहब्बत के इतिहास में अमृत की एक बूँद हैं,
जमाने की अड़चने उसकी तेज परवाज को रोक सकी,
वो खामोश रही पर लड़ी, हर रोज़ , हर घडी,
उसका हथियार भी निराला , अनूठा था, बिलकुल उसकी तरह,


एक हाथ में कलम और दूजे में कुछ खाली पन्ने
बस उन्हें ही लेकर चल पड़ी दुनिया को एक नया
नजरिया देने,
काम मुश्किल था, पर बखूबी निभाया उसने ,
इमरोज़ जो साथ
थे सपनो को रंग देने,


उसने ख्यालों को
पन्नों पर बिखेर दिया ,
इमरोज़ ने हाथ पढ़ा कर उन्हें कैनवास पर उतार दिया,
बस हर लम्हा एक दास्ताँ बनती गयी,
कभी कविताओ में तो कभी रंगों में ढलती गई।



अब ज़माने को फक्र था दोनों पर ,
अजीब हैं, पर दुनिया ने इनामों से नवाजा उन्हे,
ऐसा तो होना ही था...
सूरज चढ़ रहा था...
किरणे फैल रही थी...
संसार रोशन हो रहा था ...


अब दो सूरज आसमा में पूरे शबाब पर संसार को मोहब्बत सिखा रहे थे,
जिनकी गर्माहट से धरती पर प्यार के अंकुर फूटने लगे थे ,
नमूना बन गए थे दोनों आने वाली नस्लों के लिए ,
सारी मिसाले पुरानी हो चुकी, बेशर्त रिश्ते की ये एक अनूठी गाथा हैं ,


जिसमे सिर्फ एहसास हैं, आपसी समझ हैं...
और कोई सांसारिक बंधन नहीं
शायद इसी को कहते हैं रुहो का रिश्ता ....


नई पीढी को अपना नायक मिल चुका था ...
एक कहानी का आगाज़ हो चुका था अतीत में,
जिसे बुना था दोनों ने मिलकर, रंगों और स्याही के ताने बाने से,
ज़माना फितरत से मजबूर उगते सूरज को सलाम कर रहा था.


पढ़ने वालों ने उसकी हर रचना को सराहा,
शिद्दत से उसके प्यार को महसूस किया,
या यूँ कह ले अमृता की नज़्म की हर बूँद का अमृत पान किया ,
पर वो बावरी तो कुछ और ही बात कहती हैं


एक जन्म में अधूरे छुटे काम को ,
वापस आकर पूरा करने के साथ ही विदा ली उसने,
धरा छोड़ कर भी चैन कहा हैं उसको....
वहां से भी आवाज़ लगाती हैं...

के " मैं तैनू फेर मिलांगी"