Friday, September 10, 2010

डिप्लोमा -ए-जज़्बात (स्पेशलाईजेशन इन इनकम्प्लीट कम्युनिकेशन)

उसका मूड नहीं है आज लिखने का......फिर भी लिख रही है....क्यों ? वो खुद नहीं जानती ...जब भी कोई एकअचानक से याद आता है उसे... तो वो बहुत ज्यादा काम करती है या फिर घर वालों और ऑफिस वालों परखीझती है बेवजह पूरे दिन इरिटेट रहती हैं, या फिर बहुत ज्यादा खाती है और अगर इनमें से कुछ नहीं कर पाती, तो लिखती है न जाने क्या- क्या ....अनाप-शनाप





अब कागज़- कलम का ज़माना तो रहा नहीं सो कीबोर्ड पर उँगलियाँ घिसती है......लेकिन उस जहनगर * को लेकर आज तक कोई मुक्कमल नज़्म, गीत, कहानी, लेख ना मिसरा और ना अंतरा कुछ भी तो नहीं लिख पाई वो . कितना अजीब है ना... और ताज्जुब भरा भी जिसको लेकर एक हर्फ़ भी नहीं फूटा उसकी लेखनी से ......वो उसके दिमाग में घरौंदा बना बैठा है वो जिसका ख्याल उसकी रूटीन लाइफ को प्रभावित कर जाता है .......एक अक्षर भी ना भेट किया उसको ...लैक ऑफ़ कम्युनिकेशन की शिकार....बेचारी! नहीं-नहीं बेचारी टाइप मटिरियल नहीं वो.



रिजिट हुआ करती थी वो उन दिनों ......क्यों बदलूँ मैं .....जैसी हूँ वैसी ही रहूंगी ....मुझे कोई नहीं बदलसकता.....जाने क्यों लोग किसी की लाइफ में इम्पोर्टेंट बन जाते हैं और ना जाने क्या - क्या. हम तो बिनापरमिशन किसी को दिल में इंट्री ही नहीं देंगे.....जाने कैसे लोगों का खुद पर इख्तियार नहीं रहता .....इमोशनलफूल कहीं के.


ताज्जुब होता है उसे ....बिना दास्ताँ के इस अफ़साने पर .....कम्लीट कम्युनिकेशन का फ़ॉर्मूला वो अच्छी तरह जानती है ....बस इम्प्लीमेंट नहीं किया भारत सरकार के कानूनों के जैसे.....यहाँ तो बगैर कम्युनिकेशन के रिश्तेदारी लग गई.....ये सब कब कैसे हुआ उसे पता ही नहीं......प्रक्टिकल टर्म में विश्वास करने वाली बंदी कब इमोशनल हो गई....खुदाई साजिश का नतीजा था ये सारा......या फिर सो काल्ड खुदा कुछ सीखाना चाह रहा हो .....साइलेंट कोम्युनिकाशन के स्लेबस में जिंदगी कौन सी नई परिभाषा सिखा गई ....उसका इल्म तो उसे इन बदलते एहसासों का डिप्लोमा करने के दौरान क्या रिजल्ट घोषित होने के बाद हुआ.....खुल कर रो भी नहीं सकी वो.....खुद को ही कोसती रही ....आज भी कोसती है ...अरमानो को क्यों मचलने दिया ?


ना किसी ने कुछ कहा.....ना किसी ने कुछ सुना ....ना कुछ खोया और ना ही कुछ पाया ......फिर भी कितना कुछ हैउसके पास ....चंद लम्हे ....कुछ फनी इ-मेल्स....मोटिवेशनल थॉट्स, फेस्टिवल ग्रीटिंग्स .....पुरानी डायरी के किसी कोने में लिखा एक मोबाइल नंबर जों अब एक्सिस्ट नहीं करता है .....एक अल्हड़ बावरी गुस्से वाली को सोफ्ट और मच्योर में बदल चल दिए जनाब ....और जाते भी क्यों नहीं ...उन्हें कुछ पता ही नहीं था कि किसी के दिमाग में ऐसे फिट है कि ताला भी वही और चाभी भी वही .


गलत जगह बिना किसी की राय के जज़्बातों को इन्वेस्ट किया ....फंड की मच्युरीटी तो दूर , कोई सरेंडर वैल्यू भी नहीं मिली .......लेकिन इंटेरेस्ट का भुगतान आज भी चल रहा है ....... जज़्बातों पर भी चक्रव्रधि ब्याज लगता है क्या ? ब्रोकर भी नहीं जानता था कि प्रोस्पेक्ट क्या चाहता था.


दोस्त बोले ये तो दास्ताने इश्क का आगाज़ था .....लेकिन वो आज भी नहीं मानती कि उसको कभी मोहब्बत हुई थी उसे नीले छतरी वाले से नहीं बनती उसकी .....अनबन चलती रहती है .....ये दर्द टीसता है उसको ...इसके साथजीना आदत का हिस्सा . फिर सोच पनपती है ज़िदगी ऐसी ना होती वैसी होती तो कैसी होती ? काश ! कम्युनिकेशन कम्प्लीट हुआ होता ? ...

खैर एक शेर गुगुनाते अक्सर देखा है मैंने उसे ---
"दे गया है जों तजुर्बा अपने सफ़र का है मुझे

हो ना हो उस रहनुमा से वास्ता कोई तो है "
(नहीं जानती किसकी कलम से निकला हुआ सच है )





{जहनगर * - मेरे हिसाब से जहन में रहने वाला (ना जाने किसी शब्दकोष में ये शब्द है कि नहीं ....लेकिन हमलिखेंगे हमारा मन है अगर नहीं शब्द है तो मेरे शब्दकोष का नया शब्द माना जाये)}


17 comments:

  1. dekho ji ....ye to aap jaanti hain k khamoshiyaa samjhi jaati hain ....to aap khamosi ko jo jee chaahe samajhiye ..ham chalte hain :D.....

    keep writting :) keep smiling :)
    lov u dear :)

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  2. यह ज़िन्दगी का बहुत गहरा सच है, जहाँ सीमित दायरे वाले ही अटकते .... प्यार, एहसास सीमित दायरों के साथ ही जन्म लेता है,
    और फिर ज़िन्दगी कई फलसफे सुनाती है, कभी मुस्कान, कभी आंसू, कभी शून्य, कभी अनमनापन ........
    ये जो लिखा है, उसे महसूस किया क्योंकि ऐसे एहसास, ऐसे ख्वाब मेरी पोटली में भी हैं !

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  3. आज मूड नहीं है कमेन्ट करने का... फिर भी हम कर रहे हैं... करने के लिये :)
    यार तुम बिना मूड ही लिखा करो... अनाप-शनाप... क्या गज़ब लिखती हो की मूड बन जाता है :)
    छोड़ो यार ये बिना कम्युनिकेशन की रिश्तेदारी को... सुनो ग़ालिब साहब क्या कहते हैं
    "वफ़ा कैसी, कहाँ का इश्क, जब सर फोड़ना ठहरा
    तो फिर ऐ संग दिल तेरा ही संग-ए-आस्तां क्यूँ हो"

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  4. लेकिन हम यहाँ यही कहेंगे कि दिल कि भावनाओं को आपने वैसे का वैसा कागज़ पर उतार दिया है... मुझे लगता है आप अभी बहुत शुरूआती दिनों में हैं... बातें बहुत हैं.... आजकल लिखने में सर्वनाम का चलन भी ज्यादा है... लब्बोलुआब ये कि आप खुद से बातें करती हुई लगी और यह डाइरी का अंश लगा... जो एक ऐसी लड़की का है जो इंटर फर्स्ट या सेंकंड इयर में पढ़ रही हो... मुहब्बत कि आबो हवा उसे छू कर गुज़र रही हो... वो गहरे उतरना चाहती हो पर "डर है कि मानता नहीं " ... यह तो रही उस बात पर बात जो बात आपने उठाई है...

    लिखने कि बात कहूँ तो बहुत उम्दा लिखा है और बोल्ड अक्षर कन्विंस करते लगे... अंग्रेजी शब्द से ताल्लुक जोड़ कर क्रिएटिव टाइप का माहौल तैयार किया है... ऐसा हम भी सोचना चाहते हैं पर हो नहीं पाता

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  5. शब्दों के धरातल पर तुम्हारे नए तजुर्बेकार शब्द, एहसास के आसमां में चमकते हैं....तुम अभिव्यक्ति के दायरों को तोडती हुई .....उस परंपरा को आगे बढाती हो जिसे प्रगतिशीलता कहते हैं ..

    नहीं जानता कि तुम्हारी भावनाओं का समुद्र स्वंय में क्या क्या समाहित किये हुए है....फिलहाल इतना ही ...

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  6. कोई पोस्ट होती तो टिप्पणी कर जाती..कोई मजाक कोई दिलासा...कुछ भी कह जाती ...अहसासों पे यादों पे क्या टिप्पणी करूं भला...

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  7. :):० बिना मूड के गज़ब की बात लिखी है ..बहुत बढ़िया

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  8. kya baat hai ....unvaan hi itna shandar hai ki khincha chala aayaa.... :) aur kya kahani sunai hai ..waise isi kahani ki nayika se meri bhi jaan pehchaan lagti hai ..is nayika si kisi se ... jise ab tak yakeen nahi ki use kisi se pyar hua tha... alag trarah kee post hai humesha ki tarah aap ke style ki ...matlab aap ke hi style ki hai fir bhi alag hai .... :P

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  9. very interesting blog.....seeing first time..

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  10. priya tumne to khalipan ko bhar diya :)

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  11. संवादहीनता का अर्थ ज़िन्दगी को खरिज करना है ।

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  12. tipiyaa diyaa hai..


    binaa man se....

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  13. Bahut khoob.........
    Yahi to hai Zindagi ki sachhayi

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  14. शुक्रिया u liked my pros लेकिन ''ज़हननगर'' का जवाब नहीं .ऐसे ही नए -नए नगर बसाती रहिये

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  15. सच में..वही लिखा जो सच में होता है...जब communication incomeplte रह जाता है....शानदार पोस्ट के लिए बधाई...

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  16. मुआ मन कितनी जिरहे कर ले .....कितनी किताबो पे हाथ रखके कसमे खा ले......अपनी आदते नहीं छोड़ता...... वो कहते है न भगवान् पैदा होते हुए ही कुछ मनो में कुछ चीज़े फिक्स करके भेजता है .अन चेंजबल

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खामोशियाँ दिखती नहीं सिर्फ समझी जाती है,इन खामोशियों को टिपण्णी लिख आवाज़ दीजिये...क्योंकि कुछ टिप्पणिया सोच के नए आयाम देती है....बस यूँ न जाइए...आये है तो कुछ कह के जाइए:-)