Saturday, January 23, 2010

मुस्कुराने की शर्त पक्की है



परिवर्तन स्रष्टि का नियम है और इन्हें टाला भी नहीं जा सकता बिना बताये जाते हैं बादलों की तरह। किलकारियां कब ठहाके में बदलती है .....और ठहाके कब चिंता में पता ही नहीं चलता....बस यूँ ही उम्र गुज़र जाती है ....और एक दिन जिंदगी ख़त्म ......इंसान के जाने के बाद लोग चर्चा करते है ..... अच्छे इंसान थे ...बखूबी निभाई जिम्मेदारियां ...सारी जिंदगी दूसरों के बारे में सोचा .....संघर्ष करते रहे। लेकिन खैर परिवार के लिए बहुत कुछ कर गए है कोई परेशानी नहीं होगी। ऐसे डायलॉग सुन गुलज़ार साब की त्रिवेणी याद जाती है।

" सब पे आती है सबकी बारी से,
मौत मुंसिफ है कमोबेश नहीं आती
जिंदगी सब पे क्यों नहीं आती "

जिंदगी सब पर इसलिए नहीं आती क्योंकि हम लाना ही नहीं चाहते .....जिंदगी की जिम्मेदारियां और ज़रूरते तो हम सब के साथ है .....हम उनमें मसरूफ होकर खुद को भूल जाते है ....कभी कुछ ऐसा ट्राई करिए ----


गुब्बारा फूला कर उसे फटाक से फोड़ दीजिये। बब्बलगम खा कर छत पर जाकर बड़ा सा फुलाइये .....पडोसी मुस्कुराये तो मुस्कुराने दीजिये.....इसी बहाने वो भी हँसे। कटिया लगा कर मछली पकडिये......अपने ही घर में भाई-बहन या पति/पत्नी से छुपा कर मिठाई खा लीजिये और पूछने पर साफ़ मुकर जाइए ।बाद में मुस्करा कर हामी भरिये .....छुट्टी के दिन परिवार के साथ मिल कर पतंग उड़ाइए। एक चरखी पकडे, छुर्रैया दे,तीसरा पेंच लड़ाए,आनंद जायेगा। जिंदगी दौड़ती हुई आएगी ......तो फिर वक़्त बीतने के साथ - साथ हम उम्र गुज़ारे क्यों ? जिए क्यों नहीं। सच्ची! कई बार बेवकूफियां करने में बड़ा मज़ा आता है ....ये जो हमारे अंदर नन्हा- मुन्ना स्वीट सा बच्चा है ये जब बाहर आता है तो सिर्फ हमारे चेहरे पर ही मुस्कान नहीं देता बल्कि आस-पास वालों को भी खिलखिलाहट गिफ्ट करता है। हाल ही का एक वाकया शेयर करते है आप सब से। कड़ाके की सर्दियों में सुबह - सुबह उठाना ....फिर टू-व्हीलर ड्राइव् कर ऑफिस जाना ....जान निकल जाती है कसम से। एक सुबह कोहरे वाली कंपकपाती सर्दी रेडी हुए ऑफिस के लिए। बाउंडरी में आते ही अपने सीधे हाथ की दो उँगलियों को होटों पे लगा (सिगरेट पीते हुए अंदाज़ में ) धूएं जैसे भाप छोड़ी हवा में .....ये तापमान पता करने का कारगर नुस्खा है मेरे हिसाब से हिम्मत कर गाड़ी स्टार्ट की चल पड़े ऑफिस की ओर। उस धुआंधार कोहरे में अचानक से बादलों के बीच से झांकते सूरज चाचू नज़र गए लेकिन ऐसा लगा की कासटयूम बदल कर आये है.....मतलब चंदा मामा टाइप मटेरिअल लगे। अब जब चंदा जैसे लगे तो कहाँ दूर रह पाते हम उनसे...झट से बना लिया हमसफ़र ......हर लव स्टोरी में विलेन होता है ....बादलों ने विलेन का रोल किया और अपना कैरेक्टर पूरी ईमानदारी से प्ले किया। खैर पहुचे ऑफिस....गाडी पार्क की हमनवा को टा- टा किया और वर्कप्लेस की तरफ रुख ....बहुत खुश थे हम। जैकेट उतार कुर्सी पर लटका दी। ब्लोवेर के पास जा हाथ गरम किये....इसी बीच किसी ने पूछ लिया ......बड़ी खुश नज़र रही है आप ....बस फिर क्या था ......सुना दी हमसफ़र की कहानी...पूरी गर्मजोशी के साथ... कि किस तरह सूरज का चाँद के साथ जॉब रोटेशन हुआ ....लगे हाथ अपना पोएटिक टेलेंट भी दिखा दिया। तुकबंदी मार के कुछ ऐसे- ---
" सूरज और चाँद के मध्य एक अनोखा करार हुआ,
दिन में चाँद का और रात में सूरज का दीदार हुआ॥

हमारी कहानी सुनाने कि कला का प्रभाव ये हुआ कि हर बन्दा चाँद रुपी सूरज का दीदार करने के लिए बाहर जाकर सूरज के दर्शन के लिए लालायित हुआ......और मुस्कुराते हुए कमरे मे लौटा ......वो लोग जो दुखी आत्मा के नाम से फेमस है ऑफिस में .......मुस्कुराते इसलिए नहीं की कहीं टैक्स देना पड़ (नोन एस डेडीकेटएड इमप्लोयी) जाए.......मिलीयन डॉलर इस्माइल के साथ वापसी हुई उनकी .......सच्ची उस दिन सभी को सूरज चाँद जैसा लगा .......अब कुछ लोगो को ये बेवकूफी लगे तो लगे ..पर हमारे लिए तो जिंदगी है क्योंकि उन पलों को भरपूर जिया हमने और अपने साथियों को भी वो लम्हे महसूस करवाए .......घर से ऑफिस तक के नन्हे से सफ़र ने उस कड़ाके और गलन वाली सर्दी ने भरपूर जिंदगी दी हमें और हमने मुस्कराहट अपने साथियों को।


(अगर इस लेख को पढ़ कर आप मुस्कुराये.....बस यही तो मुआवजा है मेरा :- )