Tuesday, May 11, 2010

मोहब्बत-ए-गुलज़ार/ त्रिवेणी-ए-आबाद

कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ से ख़त्म....कौन सा किस्सा सुना दूं औ किसे छोड़ दूं ...इसी उधेड़बुन में ये पोस्ट लिखी जायेगी।

आज मोहब्बत की बात करते हैं। ना जाने कैसे लोग कहते हैं क़ि एक बार होती हैं हमें तो बहुत बार हुई ....उम्मीद हैं बदस्तूर ये सिलसिला जारी रहेगा .....और जारी भी रहना चाहिए क्योकि दिल तो बच्चा है जी और इश्क कमीना।



अपनी तो किस्मत ही ख़राब हैं जी जब फोर्थ स्टैण्डर्ड में थी तो पी० टी० टीचर पे दिल आ गया ....और अब गुलज़ार साब पे ....कभी बराबर वाले के साथ मैच ही नहीं मिला :-) पिछले सारे क़िस्से फिर कभी और आज तो लेटेस्ट मोहब्बत की कहानी ही बयां करते हैं। आजकल हमारे प्रिन्स चार्मिंग हैं गुलज़ार साब......अरे पूछिए मत क़ि उनकी किस अदा से प्यार नहीं है हमको .....उनकी कलम पर हम क्या हमारी आने वाली पीढियां कुर्बान .......कसम से... फैन, ए.सी, कूलर तो बहुत पुरानी बातें हो चुकी ......हम तो कुछ और ही हैं जी :-) वो उनका व्हाइट कलर का छोटा सा ऊंचा कुर्ता- अलीगढ पैजामा , अधकचरी दाढ़ी, सर पर सुफैद हल्के करीने से कंघी किये बाल, चौड़ा माथा और वो आखो पे चश्मा जिसपे हम कुर्बान........बस यही खत्म नहीं होता उनका अंदाज़ ....आगे देखिये .....चलते- चलते उनका हाथो को पीछे की तरफ बाँध लेना, बात करते-करते आस्तीनों को मोड़ना और तो और औटोग्राफ देते हुए स्पेक्टकल की आर्म्स को दांतों से दबा लेना .......बस! इस अदा पर किसी और को क़त्ल होने की ज़रुरत नहीं ....हम हैं ना।

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वो क्या ना बीच में हमारे बीच कुछ डिस्प्यूट्स हो गए थे अरे इब्नबतूता को लेकर .......थोड़े नाराज़ हो गए थे हम .....सर्वेश्वर जी के फेवर में खड़े हो गए थे.....हमने भी साफ़ -साफ़ बोल दिया के आपके दीवाने हैं पागल नहीं.....लेकिन अब सुलह हो गई हैं हमारे बीच ......सच्ची मोहब्बत में डिस्टेंस कैसा :-) सो फ़िक्र नॉट .......ऐवरीथिंग इस गोइंग ऑन नोर्मल।

सुने हैं के पिक्चर के अलावा साहित्य में भी कोई बड़ा कमाल किये हैं ये...त्रिवेणी बनावे हैं कोई ....और गंगा, जमुना, सरस्वती के साथ जोड़ दिए हैं। सुने तो ये भी हैं कि देखने में कोई खास चीज़ ना लगे........ पर इनका घात, आघात, प्रहार उतना ही लचीला और वैसा ही कठोर जैसे कबीर के दोहे हो हम सोचे के त्रिवेणी पे हम भी आजमाइश की जाए ......शायद कोई कारनामा अंजाम हो जाये। वो हमारी आदत हैं ना क्रेडिट देने की तो चलो दे ही देते हैं और उनको नहीं देंगे तो किसको देंगे :-) तो पहली त्रिवेणी उन्ही के नाम .....

किसी ने दो सौ सफहों में लिखी अपनी आत्मकथा
जब वो साठ बरस का था

गुलज़ार ने महज़ तीन लाइन में उम्र गुजार दी।



प्रश्न होगा कैसे ?

जवाब देखिये : -
" जिंदगी क्या है जानने के लिए,
जिंदा रहना बहुत जरूरी है

आज तक कोई रहा तो नही --गुलज़ार

अब हमारी कारस्तानी, हमारा अंदाज़ पेशे-खिदमत हैं , गुल्ज़ेरिया हुआ है हमको .....ईलाज बताएं


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रात के चाँद ने सूरज की रोशनी सोख ली,
अब तमाम बरस चांदनी सूरज से रोशन होगी,

अच्छा कारोबार हुआ है आज
( सदी के सबसे लम्बे सूर्य- ग्रहण के लिए लिखी थी ये )

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साँझ के सांवले लाल-पीले आसमां पर ,
बादलों के घूंघट से चाँद झांकता है जब

क्या गलत है जो मुझे नींद नहीं आती

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जिंदगी के कैनवास पर कुछ रंग भर लेने दो ,
सुकूँ से कुछ पल अपनी मर्ज़ी से जी लेने दो ,

सुना है इस बजट में रंग महेंगे हुए हैं


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आकाश में तारों को किसने सिया है इस तरह,
एक कारीगर ने उन्हें करघे से बुनना चाहा,

इस हंसी ख्वाब को कल कौडी में बेचेगा वो।

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गुलाब की इज्जत आज बरखा ने तार- तार कर दी,
बेशर्म कोचिया गुलाब के हालात पर मुस्कुरा रहा है

अब तो बाग़ से इंसानियत की बू आती है


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बुजुर्ग घडीसाज़ ने पुरानी घडी दुरस्त कर दी,
वक़्त के साथ चलने लगी है अब,

कांसे के बर्तनों का फैशन फिर से आएगा

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खुले बालों को तौलिये से मत झिटका करो,
पूरा तौलिया गीला हो जाता है ,

एक चिंगारी से गोदाम में आग लगी थी इस दीवाली

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ये उन दिनों की बात है जब किताबे पढ़ा करते थे ,
जुबा से लज्ज़त ले सफ़हे पलटना याद है ,

बोरोसिल की केतली में वो नुक्कड़ की चाय का स्वाद नहीं।


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कल हिचकी आई तो सोचा उसने याद किया होगा,
कुछ पल उसको याद कर मुस्कुरा लेंगे, तड़प लेंगे,

इस मुए फ़ोन ने नजदीकियों के नाम पर ठग लिया हमको।


१०

एक वक्त था जब पायल की झंकार से सुबह होती थी,
और बुजुर्गवार की खांसी से रात ,

अब एरोबिक्स के म्यूजिक से नींद टूट जाया करती है


कुछ अजब- गज़ब किया हमने.....मोहब्बत से शुरू हो ...त्रिवेणी पर ख़त्म......रब ही राखे मैनू.....साडा कुछ नी हो संक्या.......अब तो ये लगे हैं हमें के ये मोहब्बत त्रिवेणी टाइप चीज़ ही होती हैं। ये त्रिवेणी बहुत पहले लिखे थे .....ये नहीं जानते थे कि ऐसे पेश करेंगे .......लाइफ में कुछ भी प्लान्ड नहीं ........अब देखिये ना शुरू किये मोहब्बत से लटक गए गुलज़ार साब पर और गिरे त्रिवेणी पर।

आजकल अक्षर नज़र नहीं मिलाते
कन्नी काट कर निकल जाते हैं

जैसे एक- दूजे को देख रास्ता बदलते हम-तुम

इस बार काफी कुछ बोला हमने....मिलते रहेंगे...आप भी आते-जाते रहिएगा .....ये नेट का जंजाल तो आबाद रहेगा


" प्रिया "





Tuesday, May 4, 2010

वक़्त गुज़र ही जाता हैं





क्या लिखूं ? सुनते आये हैं कि सच को जीना जितना मुश्किल है उस से भी मुश्किल उसको ईमानदारी से बयां करना ..... लेकिन सच बोलने से हमें गुरेज़ नहीं ....हरिश्चंद्र टाइप इंसान तो नहीं लेकिन हाँ! यूँ ही रोज़मर्रा की छोटी - छोटी बातों पर दिन में पंद्रह बार बेवजह झूठ बोलना अभी तक तो शामिल नहीं किया जीवन में। क्यों अपने -आप अपनी आत्मा को लहू-लुहान करूँ।? वो भी क्या सोचेगी विधाता ने कौन सा चोंगा दे दिया पहनने को .....मरा आराम कम चुभन ज्यादा देता हैं। वैसे भी जिंदगी हर लम्हा जीना सिखाती हैं...कमबख्त! इमोशनल इंसान को जब तक सोफेस्तिकेटड पोलिश्ड में ना बदले हालातों का अत्याचार जारी रहता हैं.....बीते दिनों जीवन के ऐसे ही रूप का साक्षात्कार हुआ। साला (हाल ही में इस शब्द को अपनी डिकशनरी में जोड़ा) अनहेल्थी, डिपरेसिव, कोम्प्लेक्स लाइफ जीनी पड़ी।

पिछले महीने कष्टकारी रहे। बड़े लोग कहते हैं कि जों अच्छे होते हैं ईश्वर उन्ही की परीक्षा लेते हैं । इससे एक बात तो तय है कि हम अच्छे हैं इनफैक्ट पूरा परिवार ...तभी तो ईश्वर टाइम टू टाइम टेस्ट लेता रहता हैं। लेकिन इस बार इक्सामिनेशन वाकई मुश्किल था....अच्छा ! इन हालातों में सब कुछ बुरा होते हुए भी एक अच्छी सी बात ये हो जाती है कि सीखने को बहुत मिलता हैं .....सो मिला ना हमको भी ...लेकिन सच तो ये भी है कि रात और दिन बहुत लम्बे लगे। शायद उन दिनों चाँद और सूरज ने साजिश कर ओवर-टाइम कर चौबीस घंटो से ज्यादा काम किया होगा .....जब अपनों को तकलीफ होती हैं और आप असहाय होते हैं मदद में......तो ऐसी बेचारगी पर क्या बयानबाजी .... खुदा, खुदी और खुदाई बस यही हैं जों सही मायने में काम करते हैं।


लेकिन हमने भी ज़माने के संग चलने कि जैसे ज़िद कर रखी हो ....इस बार खुशियाँ ओढने में कामयाब रही शायद। ......और दुःख के दौरान खूबसूरत हो गई :-) अपनी वार्डरोब से सारे इस्टाइलइश कपड़ो को रोज़ एक -एक कर अजमाया....इएरिंग पहनना अवोइड करती हूँ अक्सर लेकिन ज्वेल्लरी बॉक्स से सारी निकाल ली और ड्रेस के साथ मैच लगा-लगा कर खूब पहनी। हालाँकि चेहरे ने साथ देने से इनकार किया......लेकिन हमने भी जैसे खूबसूरत लगने कि ज़िद कर रखी हो ...कोम्प्लिमेंट्स भी मिले....इस मुई तकलीफ ने खूबसूरत बना दिया। कुछ ख़ास लोगों को दर्द का इल्म था मेरी ...सो मोरल सपोर्ट भी मिला। लेकिन जिंदगी का जिंदगी के लिए संघर्ष वाकई मुश्किल खेल हैं। किस्मत भी हौसले को परखती है शायद........अब जिंदगी लौट आई हैं मेरे घर। उम्मीद हैं खुशिया भी दस्तक देंगी जल्दी ही। बस थोड़ी देख -रेख क़ी ज़रुरत हैं। कल मौसम खूबसूरत लगा हमें.....कविताए भी रास आने लगी .....जीवन भी अपनी पटरी पर दौड़ने लगा हैं....लेकिन एक बात तो तय हैं वक़्त कैसा भी क्यों ना हो गुज़र ही जाता हैं।


( लिखने के लिए कुछ नहीं था सो लिख दिया... जों जिया वो ही कह दिया ...लेकिन हमदर्दी वाली टिपण्णी मत चिपकाइए.... वो क्या हैं ना ....इलेक्ट्रोनिक हमदर्दी आर्टीफिसिअल फील देता हैं। )

चलिए चलते हैं अब। ...फिर कभी हाज़िर होंगे किस और तजुर्बे के साथ ....यकीनन! दुआ दीजिये अगली पोस्ट में तजुर्बा खूबसूरत हो ताकि उमंग और उल्लास के साथ शब्दों को गूंध कोई बेहतरीन स्वादिष्ट व्यंजन परोसूं।

सस्नेह

प्रिया