Saturday, July 31, 2010

ओवरलैप थॉट - जागे और सोए से


कौन नहीं ऊबता रुकी ठहरी जिंदगी से. ...बदलाव वो चाहती थी, लाख कोशिशो के बाद भी किस्मत नहीं बदली उसकी .....हाँ किस्मत ....अमूमन तो ऊपर वाला स्टेटस के हिसाब से ही देता है. उसकी खुदाई पर शक ना हो इसलिए कभी -कभी बगैर स्टेटस के भी एक-आध लोगों को मिल जाती है. तो अख़बारों में, किताबों में तहरीरे बनती हैं .उनकी मेहनत की मिसाले दे जाती हैं और मेहनत बुरका पहन खामोश.....रश्क करती है किस्मत से.



वो आगे सोचती है ......मुहं दिखाई तो दोनों की होती है मेहनत की भी और किस्मत की भी ..........लेकिन यहाँ भी बाजी पलटने के लिए सैकड़ो फैक्टर सीना चौड़ा किये खड़े रहते हैं......जबरदस्त जंग होती है .....मेहनत और किस्मत दोनों की तकदीरे दांव पर ........लेकिन रिजल्ट स्क्रिप्टेड ही होगा .....उन लोगों के लिए जों कहते हैं ...खुदा की मर्जी है के बिना पत्ता भी नहीं हिलता .


आगे सोचती है दिल्ली के बम-धमाके भी स्क्रिप्टेड थे क्या ? इन्विसिबल खुदा ही लिखता है ये सब ......फिर क्यों पूजते हैं सारे ? लड़ते है उसके लिए ....वो खुदा किसे पूजता होगा ? उहूं ...क्या यही सब सोचने के लिए बचा है मेरी लाइफ में ....सोचने में क्या प्रोडक्टविटी? और ऐसी सोच का फायदा ही क्या जों रेवन्यू ना जेनरेट करती हो. .....उसे बदलाव के साथ समझौता तो बहुत पहले कर लेना चाहिए था....किसने देखे हैं उसूलों के फल......फलसफेबाज़ होती जा रही है वो....इन विचारो के दौरान पहली बार मुस्कुराई हैं ......

मेरी लाइफ की स्क्रिप्ट भी उसी के हाथो में है, सुन ऊपर वाले स्किल्स गज़ब की है, और कमपिटेनसी तो तू भी समझता है ....जब डिरेक्टर ही बकवास होगा तो मूवी क्या ख़ाक चलेगी ......
यहाँ भी मजबूरी है ....मर्जी से डिरेक्टर भी नहीं बदल सकती .......साला ! रिस्क और जिंदगी कोम्प्लिमंट्री चीज़े हैं

विचारो की ओवेर्लेपिंग जारी है ........सोच जिंदगी नुमा उलझती जा रही है ........आगे सोच का ना कोई सिरा है औ ना पीछे का कोई छोर ......बागी विचार .....फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व की लाइन को चीरते हुए तेज़ी से बढ़ते हैं .......आगे जों चल रहा है उसे खुद नहीं पता


स्क्रिप्टेड रिअलिटी शोज़ में तो ज़्यादातर असक्षम लोग ही विनर होते हैं. शुरुवात यहाँ भी दस्तूर की, रस्मो की, रिवाजों की.......ऐसे कितने होती हैं जिनके मेहनत के चेहरे, किस्मत के चेहरे नहीं होते ....नकाब होते हैं .....बेनकाब लोगों के पास भी होती है फिर कर्म मेहनत वेर्सेस किस्मत में अपना भाग्य आजमाती हुई.. ..... वो राईट था उसके लिए ....नहीं ..... कुछ बोला क्यों नहीं .......जिसने बोला वो एक्सेप्ट करने लायक नहीं था ......अब विचारो की ये बेतरतीब उलझनों को नींद की आगोश में ही खोना था .......वरना माइग्रेन को कोई नहीं रोक सकता . इसी उधेड़बुन में इन्ही ख्यालों में आँख लग गई


...तो कल क्या कुछ नया होगा? कुछ पोजिटिव? नींद गहरी हो चली है ...सोने देते हैं, शश श ...जाग जायेगी....सोते हुए कितनी पोजिटिव लगती है ना ....वो चादर उढ़ा जीरो लाइट जला कमरे से चली जाती है.......ज़रूर माँ ही होगी उसकी

माँ खुद से कहती है ......बचपन वाली मासूमियत आज भी है और सवाल करने की आदत भी .......लेकिन बदल रही है ...बड़ी जों हो गई है ...कहते हुए कमरे से निकल जाती है


कई बार विचारो की सीवन खुल जाती है
आजाद रूह बहुत कुछ बक जाती है

आज़ादी को जंजीर पहनाई सिस्टम ने