Friday, February 4, 2011

तोहफा

मैं तुम्हे कोई तोहफा देना चाहती हूँ. वो जों दुनिया जहान में मुझे सबसे प्यारा हो, निराला हो अद्भुत हो, मुझसे ऐसा जुड़ा हो जैसे हवा और साँसे, नदी और किनारे, गृह-नक्षत्र और बारह रशिया, समंदर और शार्क,  बर्फ और ख़ामोशी, तुम-हम और हम तुम  ......अब तुम्ही को तुम्हे दूँगी तो अच्छा तो ना लगेगा ना ...भला ये भी कोई भेट हुई......कोई बाजारू  आइटम ... वो तो कोई भी किसी को भी दे सकता है....कल मार्केट में कोई नया ब्रांड आएगा और वो पुराने गिफ्ट आइटम को किक कर नए रैपर में गुरूर से सटक जायेगा...तो क्या दूं ? कोई ऐसी भेट जों अनमोल हो, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक रूप से सिर्फ मेरी....जिस से सिर्फ सिर्फ और सिर्फ मेरी रूह झलकती हो .....
अरे हाँ! मिल गया तोहफा  तुम्हारे लिए ....जानते हो! जब मै लिखती हूँ तो मै, मै कहाँ रहती हूँ ....ना जाने कितने किरदार समां जाते है मुझमे....मैं लफ्ज़- लफ्ज़ जीती हूँ, हर्फ़ हो जाती हूँ,अल्फाज़ गिरते जाते है...चुनती जाती हूँ उन्हें दामन में....चोट ना लगे, दर्द ना हो तो इस वास्ते अलग -अलग मूड का मलहम लगाती हूँ ...और क्या बताऊँ.....एटीट्युड का इंजेक्शन भी ठोका है मैंने .....  ये सब कैसे होता है मुझे नहीं पता....ये मेरे सारी नज्मे उन क्षणों की उपलब्धि है जब मैं खुद में नहीं रहती .....अमूर्त हो जाती हूँ, कितनी बार तो मैंने तुमसे कहा है कि मेरे अन्दर सैकड़ो लोग रहते हैं....इसीलिए मैं जिन्दा हूँ... मुझे नहीं पता किस मानसिक अवस्था में मै ये सारी बातें कह रही हूँ....लेकिन जब जब मैं इन किरदारों को जीती हूँ तो लगता है मै शुचिता हूँ गंगा सी नहीं...इंसान सी या स्त्री सी भी कह सकते हो ....मै चाह कर भी अपने अन्दर से इन लोगों को नहीं निकाल पाती...इनका मेरे साथ रूह का रिश्ता है ...शगुफ्ता दिखती हूँ इनके खातिर....एक बात बताऊँ....तुम खुद को भी पाओगे इनमें....बेइरादा ही सही ....लेकिन तुमको भी जिया है मैंने

तो लो ये पुलिंदा मेरी कच्ची, अधकच्ची, पक्की, झुलसी, सिमटी, शरमाई, सकुचाई, अल्हड़, लड़कपन, जवान, बुजुर्ग, हंसती, गाती, सोई- जागी सी  तहरीरो का....अब ज्यादा बखान ना होगा मुझसे.

यही मेरे जीवन भर की पूँजी है ....तुम्हे मेरा ये तोहफा तो कुबूल होगा ना...तुम चाहो तो जला सकते हो, एक-एक नज़्म, रचना, मेरे किरदार. फिर उसकी राख को डिबिया में रख बच्चो को काला टीका लगाना, ताकि फिर बच सकें नज्में बुरी नज़रों से और जन्म ले सकें नई नज्में .

तुम जों अभी तक मुझे मिले ही नहीं....इंतज़ार कर रही हूँ कबसे...मेरी जीवन-यात्रा में आने वाले मेरे मुख्य किरदार मैं तुमसे ये सब कहना चाहती हूँ . तुम सब कुछ करना पर लिखने के लिए कभी मत टोकना .....मैं चाहूँ तो जन्मो ना लिखूं, मै चाहूं तो हर सांस लिखूं....