कौन नहीं ऊबता रुकी ठहरी जिंदगी से. ...बदलाव वो चाहती थी, लाख कोशिशो के बाद भी किस्मत नहीं बदली उसकी .....हाँ किस्मत ....अमूमन तो ऊपर वाला स्टेटस के हिसाब से ही देता है. उसकी खुदाई पर शक ना हो इसलिए कभी -कभी बगैर स्टेटस के भी एक-आध लोगों को मिल जाती है. तो अख़बारों में, किताबों में तहरीरे बनती हैं .उनकी मेहनत की मिसाले दे जाती हैं और मेहनत बुरका पहन खामोश.....रश्क करती है किस्मत से.
वो आगे सोचती है ......मुहं दिखाई तो दोनों की होती है मेहनत की भी और किस्मत की भी ..........लेकिन यहाँ भी बाजी पलटने के लिए सैकड़ो फैक्टर सीना चौड़ा किये खड़े रहते हैं......जबरदस्त जंग होती है .....मेहनत और किस्मत दोनों की तकदीरे दांव पर ........लेकिन रिजल्ट स्क्रिप्टेड ही होगा .....उन लोगों के लिए जों कहते हैं ...खुदा की मर्जी है के बिना पत्ता भी नहीं हिलता .
आगे सोचती है दिल्ली के बम-धमाके भी स्क्रिप्टेड थे क्या ? इन्विसिबल खुदा ही लिखता है ये सब ......फिर क्यों पूजते हैं सारे ? लड़ते है उसके लिए ....वो खुदा किसे पूजता होगा ? उहूं ...क्या यही सब सोचने के लिए बचा है मेरी लाइफ में ....सोचने में क्या प्रोडक्टविटी? और ऐसी सोच का फायदा ही क्या जों रेवन्यू ना जेनरेट करती हो. .....उसे बदलाव के साथ समझौता तो बहुत पहले कर लेना चाहिए था....किसने देखे हैं उसूलों के फल......फलसफेबाज़ होती जा रही है वो....इन विचारो के दौरान पहली बार मुस्कुराई हैं ......
मेरी लाइफ की स्क्रिप्ट भी उसी के हाथो में है, सुन ऊपर वाले स्किल्स गज़ब की है, और कमपिटेनसी तो तू भी समझता है ....जब डिरेक्टर ही बकवास होगा तो मूवी क्या ख़ाक चलेगी ......
यहाँ भी मजबूरी है ....मर्जी से डिरेक्टर भी नहीं बदल सकती .......साला ! रिस्क और जिंदगी कोम्प्लिमंट्री चीज़े हैं
विचारो की ओवेर्लेपिंग जारी है ........सोच जिंदगी नुमा उलझती जा रही है ........आगे सोच का ना कोई सिरा है औ ना पीछे का कोई छोर ......बागी विचार .....फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व की लाइन को चीरते हुए तेज़ी से बढ़ते हैं .......आगे जों चल रहा है उसे खुद नहीं पता
स्क्रिप्टेड रिअलिटी शोज़ में तो ज़्यादातर असक्षम लोग ही विनर होते हैं. शुरुवात यहाँ भी दस्तूर की, रस्मो की, रिवाजों की.......ऐसे कितने होती हैं जिनके मेहनत के चेहरे, किस्मत के चेहरे नहीं होते ....नकाब होते हैं .....बेनकाब लोगों के पास भी होती है फिर कर्म मेहनत वेर्सेस किस्मत में अपना भाग्य आजमाती हुई.. ..... वो राईट था उसके लिए ....नहीं ..... कुछ बोला क्यों नहीं .......जिसने बोला वो एक्सेप्ट करने लायक नहीं था ......अब विचारो की ये बेतरतीब उलझनों को नींद की आगोश में ही खोना था .......वरना माइग्रेन को कोई नहीं रोक सकता . इसी उधेड़बुन में इन्ही ख्यालों में आँख लग गई
...तो कल क्या कुछ नया होगा? कुछ पोजिटिव? नींद गहरी हो चली है ...सोने देते हैं, शश श ...जाग जायेगी....सोते हुए कितनी पोजिटिव लगती है ना ....वो चादर उढ़ा जीरो लाइट जला कमरे से चली जाती है.......ज़रूर माँ ही होगी उसकी
विचारो की ओवेर्लेपिंग जारी है ........सोच जिंदगी नुमा उलझती जा रही है ........आगे सोच का ना कोई सिरा है औ ना पीछे का कोई छोर ......बागी विचार .....फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व की लाइन को चीरते हुए तेज़ी से बढ़ते हैं .......आगे जों चल रहा है उसे खुद नहीं पता
स्क्रिप्टेड रिअलिटी शोज़ में तो ज़्यादातर असक्षम लोग ही विनर होते हैं. शुरुवात यहाँ भी दस्तूर की, रस्मो की, रिवाजों की.......ऐसे कितने होती हैं जिनके मेहनत के चेहरे, किस्मत के चेहरे नहीं होते ....नकाब होते हैं .....बेनकाब लोगों के पास भी होती है फिर कर्म मेहनत वेर्सेस किस्मत में अपना भाग्य आजमाती हुई.. ..... वो राईट था उसके लिए ....नहीं ..... कुछ बोला क्यों नहीं .......जिसने बोला वो एक्सेप्ट करने लायक नहीं था ......अब विचारो की ये बेतरतीब उलझनों को नींद की आगोश में ही खोना था .......वरना माइग्रेन को कोई नहीं रोक सकता . इसी उधेड़बुन में इन्ही ख्यालों में आँख लग गई
...तो कल क्या कुछ नया होगा? कुछ पोजिटिव? नींद गहरी हो चली है ...सोने देते हैं, शश श ...जाग जायेगी....सोते हुए कितनी पोजिटिव लगती है ना ....वो चादर उढ़ा जीरो लाइट जला कमरे से चली जाती है.......ज़रूर माँ ही होगी उसकी
माँ खुद से कहती है ......बचपन वाली मासूमियत आज भी है और सवाल करने की आदत भी .......लेकिन बदल रही है ...बड़ी जों हो गई है ...कहते हुए कमरे से निकल जाती है
कई बार विचारो की सीवन खुल जाती है
आजाद रूह बहुत कुछ बक जाती है
आज़ादी को जंजीर पहनाई सिस्टम ने
nice
ReplyDeleteएक अलग पहलू---बड़े अनुभवी ख्याल ! सबकुछ है अपने हाथ , बड़ी जो हो गई हो , और सवाल माँ से ही नहीं मुझसे भी करती हो- अच्छा लगता है ....
ReplyDeleteअच्छा लगता है, जब इस तरह कुछ लिखती हो
arre kuch kehne k liye nahi hai yaar ..sahi me dil ke saath saath dimag bhi use kiya tumne likhne me isliye mere ko 2 baar padhna padha :P jus kidding dear ..bahut gehraai se likha hai ..dil bheeg gya ant tak aate aate :)
ReplyDeleteShandar, sanjeeda, so sensitive....thought provoking
ReplyDeleteजीवन दर्शन का एक अलग ही नज़रिया……………बहुत खूब्।
ReplyDeleteकल (2/8/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
this is amazing as always.
ReplyDeleteएक बार मिली थी कहीं, बहुत पीछे, बागी सी लड़की ....
ReplyDeleteबहुत कहीं पीछे एक मोड़ पर देखा था उसे
आज फिर जिंदगी, उस मोड़ पर लायी है मुझे
आ चल डूब के देखे......एक !दो !चांद से कूदे ......चलो न डूबे .....
ReplyDelete..चल सनसेट के रंग पहने तन पे......बुद्धं शरणम् गाये
इत्तिफाक से यही सुन रहा हूँ ...साइड बाई साइड तुम्हारी पोस्ट पढ़ते हुए....हिन्दुस्तान टाइम बतलाता है एक मुस्लिम लड़की ने बुरका पहने से इनकार कर दिया है ......तो उसे कॉलेज में आने से मना कर दिया है ...वही कलकत्ता ...जो मेट्रो है .....लड़की की फोटो है....शायद २३-२४ की होगी....इस उम्र में सपनो में बड़ा हौसला रहता है ...टेनिस की बाल की तरह रिवर्स हेंड से शोट खेलने की ताकत जो रहती है ...आहिस्ता आहिस्ता .रस्मे....... रवायातो की शक्ल में दाखिल होती है .....हौसलों को फांसने के वास्ते.....
देखो भूपिदर ओर चित्रा अब भी गा रहे है ......
चल जेबे भर ले तारो से ....
कमेन्ट के बक्से में आग्रह है, कुछ कह के जाने की...
ReplyDeleteलगता है, यहाँ भी दुसरे अनुराग जी अवतरित हो रहे हैं... पहले से ज्यादा धारधार, बेहतर और बहुत कुछ सोचने को देता हुआ.
soch jindaginuma uljhati ja rahi hai..kya shkl di hai soch ki..isi soch mein hoon..well written post..keep going :)
ReplyDeleteBahut Khoob ...
ReplyDeleteHappy Blogging
ultimate post........
ReplyDeleteur triveni is really awesome!
ur triveni is really awesome!
ReplyDeleteकुछ लोगों को मेरा लेखन डॉ. अनुराग की शैली से प्रभावित लगा .....अगर ऐसा हुआ है तो इरादतन तो नहीं किया हमने.....कांसेप्ट हमारा ही है .....अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया शायद इसलिए या फिर डॉ. अनुराग को पढ़ते -पढ़ते उनका स्टाइल कब कीबोर्ड से कब फिसला पता ही नहीं चला.....वैसे डॉ. अनुराग खुद गुलज़ार साब के अक्स नुमा लिखते हैं .....सो वहाँ तक पहुँच पाना भी हमारे हिसाब से उपलब्धि ही हुई ......
ReplyDeleteवो ख़ुदा किसे पूजता होगा... कौन जाने... वो क्या वाकई ख़ुदा है ? उसे ख़ुदा तो हम इंसानों ने बनाया... ह्यूमन एरर हो शायद... हम इन्सान होते ही ऐसे हैं... थोड़े इमोशनल टाइप... किसी को भी भगवान बना के सर पे बिठा लेते हैं... जो सच में वो ख़ुदा है तो पार्शिअल क्यूँ है... हम इंसानों की तरह... विचारों की ओवरलैपिंग जारी है और जारी ही रहेगी... ता-उम्र... ठीक वैसे ही जैसे दिल और दिमाग की फाईट...
ReplyDeleteऔर हाँ तुमने और बाक़ी लोगों ने पॉइंट किया तो डॉ. साब तो हमें भी झाँकते हुए दिखे कहीं कहीं... थॉट्स में नहीं पर शायद प्रेज़ेन्टेशन में... बाक़ी उनके और गुलज़ार साब के पंखे तो हम भी हैं... और जैसे गुलज़ार साब का "ग" भी कहीं दिख जाये तो पहचान में आ ही जाता है वैसे ही आजकल डॉ. साब हो गये हैं ब्लॉगिंग की दुनिया में... उनके मुरीद भी क़यामत की नज़र रखते हैं :)
:)
ReplyDeletebahoot khoob
ReplyDeleteसोच रहा था, लिखे बिना चला जाऊं..."ख़ूबसूरत" लिख के जाना मुनासिब नहीं.
ReplyDeleteलेकिन कुछ लिख कर जाना ही है तो कहूँगा...ऐसा खरा, गहरा और चुस्त लिखते रहिये.
बाकी पोस्ट पर...तो सोचने की चीज है, और वही कर रहा हूँ.
शुभकामनाएँ.
Zindagi jab thahaati hai tabhi vichaacharon ki overlapping hoti hai...raasta nahi soojhta aur ghise pite vichar hi umadte hain...Aapki script achchi lagi...
ReplyDeleteHope to see some more outstanding creativity. Best of luck in advance...
बड़ी प्यारी पोस्ट है, ख्याल बेलगाम से बहे जा रहे हैं...और एक कुशल नाविक की तरह नाव खेती आगे बढती जा रही हो तुम.
ReplyDeleteआज की मेरी पोस्ट पर का तुमहरा कमेन्ट आँखें भिगो गया...तुम्हारा तहे दिल से शुक्रिया करने आई हूँ. बस.
लिखे की तारीफ़ ज्यादा हो नहीं पा रही है आजकल मुझसे. माफ़ी चाहूंगी.
बहुत सुन्दर ...बधाई
ReplyDelete.
ReplyDeleteall are not sleeping, some are aware,
all are not ahead , just few,
all are not not leaders, just one !
Survival of the fittest !
rest will perish !
zealzen.blogspot.com
.
Tere khat
ReplyDeleteAag laga sakte the
Har Paani me
Ham unhe Barf ki Duniya me
Daba aaye hain
Ab toh pighlengi
Zamaano se jami Chattaane :
Naye jharno
Nayi Nadiyon ko
Jaga aaye hain
- Priya and Geeta from Sainny's ID
kahaan se bachte huye aaye the ham yahaan par...
ReplyDeletekya kahein..?
हूँ .........प्रिया जी ! तो आप भी बागी हैं....
ReplyDeleteसमंदर में भी बड़ी बिंदास होकर अपनी नाव खे लेती हैं आप......यहाँ ऊंची लहरे हैं .......चारो और शार्क हैं........और मौसम भी अनुकूल नहीं.....फिर भी आपके हाथों में जो चप्पू है .......वह चल रहा है .....आपके मन माफिक ......और उससे जो संगीत निकल रहा है ....उसे सुन पा रहा हूँ मैं भी. आपकी नाव खेने की इस कुशलता को मेरा सलाम !