Friday, August 14, 2009

"देश प्रेम का कर्त्तव्य निभा दिया मैंने "


देश ने आज़ादी के ६२ वर्ष पूरे कर लियेहर जगह और हर कोई आजादी का जश्न अपने - अपने तरीका से मना रहा हैं ,टेलीविज़न पर इन बीते ६२ वर्षो के विकास, आदमी के नैतिक और चारित्रिक पतन पर सवाल उठाए जा रहे हैं कुछ गणमान्य व्यक्तियों को बुलाकर चर्चा भी की जायेगीरेडियो में आज पूरे दिन देश भक्ति से ओ़त - प्रोत गाने सुनाये जा रहे है , जनता को जोड़ने के लिये कुछ कांटेस्ट भी कराये जा रहे है समाचार पत्र आज़ादी के रंग में रंगे हैकुछ लोग छुट्टी का दिन समझ कोई मूवी देख लेंगे , शौपिंग कर लेंगे , कुछ पेंडिंग जॉब्स पूरे होंगेब्लोगर्स अपना ज्ञान अपनी सोच अपने ब्लॉग पर छाप देंगे , जैसे हमने किया है अमर शहीदों की थोडी - बहुत चर्चाये होंगी लीजिये शाम हो गई तारीख गुज़र गई, एक दिन ख़त्म जिंदगी फ़िर पुरानी रफ़्तार पर दौडेगी कल सेएक बार फ़िर आएगा ऐसा ही माहौल २६ जनवरी को ...... फ़िर हम इस परम्परा को दोहरा लेंगे


यही है आज़ादी के मायने ........बेचारे हमारे देश के नेता, बुरे दिन चल रहे है उनके .....जिसको देखो उन्हें कोसने से बाज नही आता... और हो भी क्यो राजनीति की भावना जो बदल गई है.......किसी नेता पर कोई चुटकुला किसी मसखरे ने बना दिया आकर उसे लाफ्टर शो पर सुना दिया जज हँसे जनता हँसी चलिए इसी बहाने कॉमेडियन की जेब भरी नेता जी कुछ तो काम आए त्याग या फिर देशप्रेम के भाव ही कहाँ है राजनीति मेंराजनीति तो एक करियर है और वो भी ऐसा जिसमे पीढिया पलेपर क्यो करू मै ये बातें..... जिस बहस का कोई परिणाम ही नही


सुना है और पढ़ा भी कि आजादी की लडाई में पत्रकारों की बड़ी भूमिका रही है... कलम की ताकत ने भी अंग्रेजो का चैन छीना था..... उन दिनों प्रिंटिग प्रेस पर अंग्रेज सरकार छापे डालती थी, यही एक मात्र साधन था जनता से जुड़ने कापर वो जाबाज़ चोरी- छिपे कैसे भी, जान जोखिम में डाल कर क्रांतिकारियों और नरम दल के विचारो को जनता तक लातेएक सवाल है जहन में..... क्या इमानदारी से किए गए पत्रकारिता के पेशे में इतनी कमाई है कि कोई पत्रकार अपना न्यूज़ चैनल लॉन्च कर ले? ये वही चैनल्स है जो पूरे दिन किसी एक पार्टी के नेता की ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर टेलीकास्ट करते है और शाम को उन्ही के साथ डिनर करते है...... आफ्टरआल उनके करियर का भी तो सवाल है

अब बात कर लेते है जज़्बातों की, कवियों की, रचनाकारों की....... "शब्द असर करते है, इनकी ताकत से इन्कार नही किया जा सकता , ये प्रेरक है और मानसिक पटल पर गहरा असर डालते है आज़ादी के गीतों, कविताओ में अपनी पसंद के कुछ गीत उद्ध्रत करना चाहेंगे हम

सबसे पहले राम प्रसाद बिस्मिल

"यूं खडा मकतल में कातिल कह रहा है बार बार,
क्या तमन्ना - -शहादत भी किसी के दिल में है ,
दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्किलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको आज ,
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है

वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें हो खून - -जूनून
तूफानों से क्या लड़े जो कश्ती - -साहिल में है

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है .
देखना है ज़ोर कितना बाजुए कातिल में है "
...............................................................................................................................................................................
कवि प्रदीप
" मेरे वतन के लोगों
तुम खूब लगा लो नारा
ये शुभ दिन है हम सब का
लहरा लो तिरंगा प्यारा
पर मत भूलो सीमा पर
वीरों ने है प्राण गँवाए
कुछ याद उन्हें भी कर लो -
जो लौट के घर आये -

कवि प्रदीप ने बहुत सारे देश भक्ति के गीत देश को दिए, सिनेमा में इनका प्रदापर्ण भी देश भक्ति गीत से ही हुआ था।
.........................................................................................................................................................................
जय शंकर प्रसाद -

हिमाद्रि तुंग शृंग से

प्रबुद्ध शुद्ध भारती

स्वयंप्रभा समुज्ज्वला

स्वतंत्रता पुकारती

'अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,

प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'


असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ

विकीर्ण दिव्य दाह-सी

सपूत मातृभूमि के-

रुको न शूर साहसी !

अराति सैन्य सिंधु में, सुवड़वाग्नि से चलो,

प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो !

...........................................................................................................................................................................

और अब आज के कवि की रचना ... जो युवाओ में काफी लोकप्रिय है अपनी श्रृंगार रस की कविताओ के लिये....पर इनकी भी लेखनी ने जोर मारा.... जब देश के दुश्मन ने भारत माँ को छलनी करना चाहा, तब भला एक कवि की लेखनी नायिका के सौंदर्य का वर्णन, मिलन और विरह पर कैसे गीत लिखती ............ .

डॉ कुमार विश्वास

है नमन उनको की जो यशकाय को अमरत्व देकर
इस जगत के शौर्य की जीवित कहानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
पिता जिनके रक्त ने उज्जवल किया कुलवंश माथा
माँ वही जो दूध से इस देश की रज तोल आई
बहन जिसने सावनों मे भर लिया पतझड स्वँय ही
हाथ ना उलझ जाऐ, कलाई से जो राखी खोल लाई
बेटियाँ जो लोरियों में भी प्रभाती सुन रही थी
'पिता तुम पर गर्व है ' चुपचाप जाकर बोल आईं
प्रिया जिसकी चूडियों मे सितारे से टूटतें हैं
माँग का सिंदूर देकर जो सितारें मोल लाई
है नमन उस देहरी जिस पर तुम खेले कन्हैया
घर तुम्हारे परम तप की राजधानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
हमने भेजे हैं सिकन्दर सिर झुकाए मात खाऐ
हमसे भिडते हैं हैं वो जिनका मन धरा से भर गया है
नर्क में तुम पूछना अपने बुजुर्गों से कभी भी
सिंह के दांतों से गिनती सीखने वालों के आगे
शीश देने की कला में क्या गजब है क्या नया है
जूझना यमराज से आदत पुरानी है हमारी
उत्तरों की खोज में फिर एक नचिकेता गया है
है नमन उनको की जिनकी अग्नि से हारा प्रभंजन
काल कऔतुक जिनके आगे पानी पानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...
लिख चुकी है विधि तुम्हारी वीरता के पुण्य लेखे
विजय के उदघोष, गीता के कथन तुमको नमन है
राखियों की प्रतीक्षा , सिन्दूरदानों की व्यथाऒं
देशहित प्रतिबद्ध यऔवन कै सपन तुमको नमन है
बहन के विश्वास भाई के सखा कुल के सहारे
पिता के व्रत के फलित माँ के नयन तुमको नमन है
कंचनी तन, चन्दनी मन , आह, आँसू , प्यार ,सपने,
राष्ट्र के हित कर चले सब कुछ हवन तुमको नमन है
है नमन उनको की जिनको काल पाकर हुआ पावन
शिखर जिनके चरण छूकर और मानी हो गये है ...
है नमन उनको की जिनके सामने बौना हिमालय
जो धरा पर गिर पडे पर आसमानी हो गये है ...


................................................................................................................................................
अब चलते- चलते कुछ पंक्तिया मेरी तरफ़ से ----

आँखों में कुछ ख्वाब है,
और दिल में शोला जल रहा,
कुछ कर गुजरने के आस में लहू है उबल रहा ,
सीने पे खा के गोली दुश्मन को है रुखसत किया,
क्या करे अब हम के दुश्मन घर में ही है पल रहा


कहलाते है निगेबाह जो मुल्क को है वो लूटते ,
है नुमाइंदे जनता के जमूरियत से खेलते ,
मुल्क के खैरखवा से अस्मत आज खतरे में है ,
गद्दारों को सबक सिखाने भगत सिंह घर -घर में है

.............................................................


हम है आज के युवा
हमें वक़्त बदलना आता है,
भ्रष्टाचार, आतंकवाद और कुर्सीवाद से निपटना आता है,
" संसद को अपनी जागीर समझने वालो,
सुधर जाओ, वरना हमको
व्यवस्था तंत्र बदलना आता है"
"प्रिया "


चलिए .... ब्लॉग्गिंग करके हमने भी कर्तव्य पूरा कर दिया। एक आत्म संतोष है कि कुछ योगदान तो हमने भी किया.....अब फ़िर इंतज़ार करते है गणतंत्र दिवस का।