ब्लॉग्गिंग की दुनिया में कदम रखने के साथ ही ...... अमृता जी के बारे में पढ़ा, सुना, जाना और समझा भी। बहुत से ब्लोगर ने फिर चाहे वो हिन्दी से जुड़े हो या अंग्रेजी से उनके जीवन संघर्ष के बारे में लिखा...... तो किसी ने उनकी कविताओ, रचनाओ का ब्लॉग बना उनके प्रति अपने प्रेम का समर्पण किया ।
मुझे अमृता जी के स्वतंत्र विचारो और इमरोज़ जी के अमृता जी के प्रति निष्काम स्नेह ने बहुत प्रभावित किया। .......... अमृता जी की कलम ने मेरी रक्तवाहिनियों में हरकत की तो इमरोज़ के व्यक्तित्व ने दिमाग की नसों को झकझोर कर रख दिया।
इन दोनों का ऐसा असर हुआ की मेरी कलम ने भी हरकत की......... हर हर्फ़ दिल से निकला लफ्ज़ -लफ्ज़ बन कागज़ पर कुछ यूँ बिखरा ...... बरसो कि ये कथा फ़कत पन्नो में सिमट गई .....तब कही जाकर होश आया कि अरे! मैं भी इनपर कुछ लिख गई ।
अपनी ये कृति इमरोज़ जी को भेजी ....उन्हें तो बहुत पसंद आई......मिलना नही हो पाया उनसे... बस फोन पर ही बात हुई। वो बोले " आप लिखती है ..... जानकर अच्छा लगा..... अगर अमृता पर कुछ लिखो तो मुझे भेजना जरूर।" इमरोज़ जी का आर्शीवाद तो प्राप्त हो चुका हैं। अगर आप लोगों का भी मिल जाए ...... तो बात बन जाए :-)
एक रूहानी रिश्ता - अमृता / इमरोज़
जिसकी शायरी से आता है रूह को सूकून ,
जिसकी हर नज्म में रब बसता हैं,
जिसकी सीधी , सच्ची गहरी बातों से ये जहान खिल उठता हैं,
जिसके नगमों में रब जैसा सच्चा प्यार झलकता हैं,
जिसने पाकीज़गी से मोहब्बत को जिया...
और दुनियावी बन्धनों से दूर रखा,
जिसने मोहब्बत को रिश्तों के इल्जाम और शर्तो के बिना निभाया
जीवन की अंतिम सांस तक ....
उसकी हर रचना मोहब्बत के इतिहास में अमृत की एक बूँद हैं,
जमाने की अड़चने उसकी तेज परवाज को रोक न सकी,
वो खामोश रही पर लड़ी, हर रोज़ , हर घडी,
उसका हथियार भी निराला , अनूठा था, बिलकुल उसकी तरह,
एक हाथ में कलम और दूजे में कुछ खाली पन्ने
बस उन्हें ही लेकर चल पड़ी दुनिया को एक नया नजरिया देने,
काम मुश्किल था, पर बखूबी निभाया उसने ,
इमरोज़ जो साथ थे सपनो को रंग देने,
उसने ख्यालों को पन्नों पर बिखेर दिया ,
इमरोज़ ने हाथ पढ़ा कर उन्हें कैनवास पर उतार दिया,
बस हर लम्हा एक दास्ताँ बनती गयी,
कभी कविताओ में तो कभी रंगों में ढलती गई।
अब ज़माने को फक्र था दोनों पर ,
अजीब हैं, पर दुनिया ने इनामों से नवाजा उन्हे,
ऐसा तो होना ही था...
सूरज चढ़ रहा था...
किरणे फैल रही थी...
संसार रोशन हो रहा था ...
अब दो सूरज आसमा में पूरे शबाब पर संसार को मोहब्बत सिखा रहे थे,
जिनकी गर्माहट से धरती पर प्यार के अंकुर फूटने लगे थे ,
नमूना बन गए थे दोनों आने वाली नस्लों के लिए ,
सारी मिसाले पुरानी हो चुकी, बेशर्त रिश्ते की ये एक अनूठी गाथा हैं ,
जिसमे सिर्फ एहसास हैं, आपसी समझ हैं...
और कोई सांसारिक बंधन नहीं
शायद इसी को कहते हैं रुहो का रिश्ता ....
नई पीढी को अपना नायक मिल चुका था ...
एक कहानी का आगाज़ हो चुका था अतीत में,
जिसे बुना था दोनों ने मिलकर, रंगों और स्याही के ताने बाने से,
ज़माना फितरत से मजबूर उगते सूरज को सलाम कर रहा था.
पढ़ने वालों ने उसकी हर रचना को सराहा,
शिद्दत से उसके प्यार को महसूस किया,
या यूँ कह ले अमृता की नज़्म की हर बूँद का अमृत पान किया ,
पर वो बावरी तो कुछ और ही बात कहती हैं
एक जन्म में अधूरे छुटे काम को ,
वापस आकर पूरा करने के साथ ही विदा ली उसने,
धरा छोड़ कर भी चैन कहा हैं उसको....
वहां से भी आवाज़ लगाती हैं...
के " मैं तैनू फेर मिलांगी"
जिसकी शायरी से आता है रूह को सूकून ,
जिसकी हर नज्म में रब बसता हैं,
जिसकी सीधी , सच्ची गहरी बातों से ये जहान खिल उठता हैं,
जिसके नगमों में रब जैसा सच्चा प्यार झलकता हैं,
जिसने पाकीज़गी से मोहब्बत को जिया...
और दुनियावी बन्धनों से दूर रखा,
जिसने मोहब्बत को रिश्तों के इल्जाम और शर्तो के बिना निभाया
जीवन की अंतिम सांस तक ....
उसकी हर रचना मोहब्बत के इतिहास में अमृत की एक बूँद हैं,
जमाने की अड़चने उसकी तेज परवाज को रोक न सकी,
वो खामोश रही पर लड़ी, हर रोज़ , हर घडी,
उसका हथियार भी निराला , अनूठा था, बिलकुल उसकी तरह,
एक हाथ में कलम और दूजे में कुछ खाली पन्ने
बस उन्हें ही लेकर चल पड़ी दुनिया को एक नया नजरिया देने,
काम मुश्किल था, पर बखूबी निभाया उसने ,
इमरोज़ जो साथ थे सपनो को रंग देने,
उसने ख्यालों को पन्नों पर बिखेर दिया ,
इमरोज़ ने हाथ पढ़ा कर उन्हें कैनवास पर उतार दिया,
बस हर लम्हा एक दास्ताँ बनती गयी,
कभी कविताओ में तो कभी रंगों में ढलती गई।
अब ज़माने को फक्र था दोनों पर ,
अजीब हैं, पर दुनिया ने इनामों से नवाजा उन्हे,
ऐसा तो होना ही था...
सूरज चढ़ रहा था...
किरणे फैल रही थी...
संसार रोशन हो रहा था ...
अब दो सूरज आसमा में पूरे शबाब पर संसार को मोहब्बत सिखा रहे थे,
जिनकी गर्माहट से धरती पर प्यार के अंकुर फूटने लगे थे ,
नमूना बन गए थे दोनों आने वाली नस्लों के लिए ,
सारी मिसाले पुरानी हो चुकी, बेशर्त रिश्ते की ये एक अनूठी गाथा हैं ,
जिसमे सिर्फ एहसास हैं, आपसी समझ हैं...
और कोई सांसारिक बंधन नहीं
शायद इसी को कहते हैं रुहो का रिश्ता ....
नई पीढी को अपना नायक मिल चुका था ...
एक कहानी का आगाज़ हो चुका था अतीत में,
जिसे बुना था दोनों ने मिलकर, रंगों और स्याही के ताने बाने से,
ज़माना फितरत से मजबूर उगते सूरज को सलाम कर रहा था.
पढ़ने वालों ने उसकी हर रचना को सराहा,
शिद्दत से उसके प्यार को महसूस किया,
या यूँ कह ले अमृता की नज़्म की हर बूँद का अमृत पान किया ,
पर वो बावरी तो कुछ और ही बात कहती हैं
एक जन्म में अधूरे छुटे काम को ,
वापस आकर पूरा करने के साथ ही विदा ली उसने,
धरा छोड़ कर भी चैन कहा हैं उसको....
वहां से भी आवाज़ लगाती हैं...
के " मैं तैनू फेर मिलांगी"
अच्छा प्रयास आभार !
ReplyDeleteइमरोज़ किसी को निराश नहीं करते ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने ..एक एक लाइन अच्छी लगी
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा !
ReplyDeleteदिल को छूती हुई पोस्ट !
दिली शुभकामनाएँ !
आज की आवाज
ek khubsoorat koshish .....padhkar achchha laga ki isee ko kahate hai ruhanee pyaar .....jo samay se pare the......bahut hi sundar
ReplyDeleteमुझे तो बहुत पसंद आई...बेहद
ReplyDeleteबेहतर शुरूआत...
ReplyDeleteजिसमें सिर्फ अहसास है,आपसी समझ है..
ReplyDeleteऔर कोई सांसारिक बंधन नहीं
शायद इसीको कहते है रूहों का रिश्ता ..
वाह वाह बहुत खूब ,बहुत सुन्दर ,दिल को छूता है हर एक शब्द ..
आपका स्वागत है ... मक्
अच्छे भाव। शुभकामना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
bahut badhiyaa
ReplyDeleteबहुत खूब प्रिय जी;
ReplyDeleteरचनाओ के बरक्स कुछ ही लोग तो हैं जिनका जीवन भी किसी रचना से कमतर नहीं ..ऐसे में सात्र और सिमोन की ही तरह इमरोज़ और अमृता जी का जीवन भी हमारे लिए है.....आपका प्रयास निश्चित ही ब्लॉग और हम लोगों के लिए महत्वपूर्ण होगा......जुड़े रहिये.......और हमे सम्रिध्ह करते रहिये ...........
प्रियंका जी,
ReplyDeleteमुझे ख़ुशी हुई कि आपकी बात इमरोज़ जी से हो पाई, और वजह मैं बनी| कभी दिल्ली आयें तो उनसे ज़रूर मिलें, सभी से मिलकर बहुत खुश होते हैं वो|
आपकी रचना पढ़ी, बहुत खूबसूरती से उन दोनों के जज़्बात लिखे हैं आपने| यूँ हीं लिखती रहें, मेरी शुभकामना है| मेरी रचना आपको पसंद आई मन से शुक्रिया|
अमृता जी पर जितना भी लिखा जाये कम ही पड़ेगा...आप लिखिए...
ReplyDeleteनीरज
Nice One...!
ReplyDeleteप्रिया... कहाँ से शुरू करें... अमृता जी और इमरोज़ जी को जानने के इस सफ़र में शायद शुरू से तुम्हारे साथ रहे हैं... काफ़ी कुछ साथ में ही पढ़ा और समझा है उनके बारे में और बहुत बार हमारा discussion भी हुआ है उन पर... इस रचना को भी इसके सृजन से ले कर सम्पूर्ण होने तक सुना, समझा और सराहा है और हाँ कई बार त्रुटियां भी निकाली हैं :-) ... फिर इमरोज़ जी को ये कृति भेजने से ले कर उनकी प्रतिक्रिया आने तक भी साथ ही रहे हैं... और इस दौरान काफ़ी बार इसे पढ़ा है और जितनी बार इसे पढ़ा है हर बार और भी अच्छी लगी है और ये जाने कितनी ही बार तुम्हे बता भी चुके हैं... अब शायद कुछ नया बचा नहीं है इसकी प्रशंसा में कहने के लिये... बस इतना ही कहेंगे... एक बहुत ही रूहानी रिश्ते की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut khubsurat.....
ReplyDeletesach kaha aapne ..aisa lagta hai amrita ke aakhir udgar hon ......... main tainu fir milangi ...
ReplyDeleteachha likha hai apne ...
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteअचानक आपका कमेंट देखा मेरे एक पुराने ब्लॉग 'मेरी महफिल' पर....उसी का शुक्रिया करते-करते आपके ब्लॉग तक पहुंचा......
ख़ैर, कभी हिंदयुग्म पर भी आइए....अब अपनी ब्लॉगिग वहीं होती है...
baithak.hindyugm.com
www.hindyugm.com
आगे भी आते रहें...अगर हमें लेख भेजना चाहें तो हमारी आइडी है
memoriesalive@gmail.com
baithak.hindyugm.com
निखिल आनंद गिरि
bahut he achha likha hai aapne...
ReplyDeletedil khush ho gaya padh ke....
shukriya isey share karne k liye...
indeed very good...
thanks
http://shayarichawla.blogspot.com/
priya ji...
ReplyDeleteshukriya aane ke liye aur apne comments dene ke liye...
main to aapka follower ban gaya hoon...
so aata rahunga aap bhi apne mubarak kadam le ke aate rahiyega mere blog par...
bhut hi khub...aapne aapke blog ke kenvas pr jisterh se amrita..or imroj ji ko ukera he..usme kai indra dhnush dikte he..amrita ji or imroj ko aaj ki pidi ydi samjh ske to vo jaan skegi ki pyaar ki pribhasha kya he..
ReplyDeletebahut khoob likha hai aapne...amrita-imroz ka risht wastav me adarsh hai.amrita pritam ji ki nazar ki aapki rachna kafi pasand aayi.
ReplyDeletekeep writing!!