Tuesday, May 4, 2010

वक़्त गुज़र ही जाता हैं





क्या लिखूं ? सुनते आये हैं कि सच को जीना जितना मुश्किल है उस से भी मुश्किल उसको ईमानदारी से बयां करना ..... लेकिन सच बोलने से हमें गुरेज़ नहीं ....हरिश्चंद्र टाइप इंसान तो नहीं लेकिन हाँ! यूँ ही रोज़मर्रा की छोटी - छोटी बातों पर दिन में पंद्रह बार बेवजह झूठ बोलना अभी तक तो शामिल नहीं किया जीवन में। क्यों अपने -आप अपनी आत्मा को लहू-लुहान करूँ।? वो भी क्या सोचेगी विधाता ने कौन सा चोंगा दे दिया पहनने को .....मरा आराम कम चुभन ज्यादा देता हैं। वैसे भी जिंदगी हर लम्हा जीना सिखाती हैं...कमबख्त! इमोशनल इंसान को जब तक सोफेस्तिकेटड पोलिश्ड में ना बदले हालातों का अत्याचार जारी रहता हैं.....बीते दिनों जीवन के ऐसे ही रूप का साक्षात्कार हुआ। साला (हाल ही में इस शब्द को अपनी डिकशनरी में जोड़ा) अनहेल्थी, डिपरेसिव, कोम्प्लेक्स लाइफ जीनी पड़ी।

पिछले महीने कष्टकारी रहे। बड़े लोग कहते हैं कि जों अच्छे होते हैं ईश्वर उन्ही की परीक्षा लेते हैं । इससे एक बात तो तय है कि हम अच्छे हैं इनफैक्ट पूरा परिवार ...तभी तो ईश्वर टाइम टू टाइम टेस्ट लेता रहता हैं। लेकिन इस बार इक्सामिनेशन वाकई मुश्किल था....अच्छा ! इन हालातों में सब कुछ बुरा होते हुए भी एक अच्छी सी बात ये हो जाती है कि सीखने को बहुत मिलता हैं .....सो मिला ना हमको भी ...लेकिन सच तो ये भी है कि रात और दिन बहुत लम्बे लगे। शायद उन दिनों चाँद और सूरज ने साजिश कर ओवर-टाइम कर चौबीस घंटो से ज्यादा काम किया होगा .....जब अपनों को तकलीफ होती हैं और आप असहाय होते हैं मदद में......तो ऐसी बेचारगी पर क्या बयानबाजी .... खुदा, खुदी और खुदाई बस यही हैं जों सही मायने में काम करते हैं।


लेकिन हमने भी ज़माने के संग चलने कि जैसे ज़िद कर रखी हो ....इस बार खुशियाँ ओढने में कामयाब रही शायद। ......और दुःख के दौरान खूबसूरत हो गई :-) अपनी वार्डरोब से सारे इस्टाइलइश कपड़ो को रोज़ एक -एक कर अजमाया....इएरिंग पहनना अवोइड करती हूँ अक्सर लेकिन ज्वेल्लरी बॉक्स से सारी निकाल ली और ड्रेस के साथ मैच लगा-लगा कर खूब पहनी। हालाँकि चेहरे ने साथ देने से इनकार किया......लेकिन हमने भी जैसे खूबसूरत लगने कि ज़िद कर रखी हो ...कोम्प्लिमेंट्स भी मिले....इस मुई तकलीफ ने खूबसूरत बना दिया। कुछ ख़ास लोगों को दर्द का इल्म था मेरी ...सो मोरल सपोर्ट भी मिला। लेकिन जिंदगी का जिंदगी के लिए संघर्ष वाकई मुश्किल खेल हैं। किस्मत भी हौसले को परखती है शायद........अब जिंदगी लौट आई हैं मेरे घर। उम्मीद हैं खुशिया भी दस्तक देंगी जल्दी ही। बस थोड़ी देख -रेख क़ी ज़रुरत हैं। कल मौसम खूबसूरत लगा हमें.....कविताए भी रास आने लगी .....जीवन भी अपनी पटरी पर दौड़ने लगा हैं....लेकिन एक बात तो तय हैं वक़्त कैसा भी क्यों ना हो गुज़र ही जाता हैं।


( लिखने के लिए कुछ नहीं था सो लिख दिया... जों जिया वो ही कह दिया ...लेकिन हमदर्दी वाली टिपण्णी मत चिपकाइए.... वो क्या हैं ना ....इलेक्ट्रोनिक हमदर्दी आर्टीफिसिअल फील देता हैं। )

चलिए चलते हैं अब। ...फिर कभी हाज़िर होंगे किस और तजुर्बे के साथ ....यकीनन! दुआ दीजिये अगली पोस्ट में तजुर्बा खूबसूरत हो ताकि उमंग और उल्लास के साथ शब्दों को गूंध कोई बेहतरीन स्वादिष्ट व्यंजन परोसूं।

सस्नेह

प्रिया