आजकल माहौल बहुत खुशनुमा है बाज़ारों में रौनक है त्योहारों का स्वागत करने को सभी बेताब है, घरों में कीर्तन, मंदिरों में लगातार बजते घंटे , हवन, यज्ञ, जगराते माँ शेरावाली का गुणगान, पंडालों में माँ की भव्य मूर्तिया और उनमें उमड़ी भीड़, इंसान को उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी से कुछ अलग अनुभूति कराते ........और हाँ इस सबके बीच गरबा....जिसकी चर्चा के बिना नवरात्रि का पर्व अधूरा है। सब कुछ बहुत अच्छा है मन में पवित्र भाव और कुछ पल अध्यात्म की ओर बढ़ते कदम मन को सुकून दे जाते।
हमारे शास्त्रों में स्रष्टि निर्माण के पूर्व यदि किसी का अस्तित्व बताया गया है तो वो है महाशक्ति महामाया माँ जगदम्बे। जिनके कारण ही ब्रह्म, विष्णु, महेश का अस्तित्व रहा है और जिसे युगों- युगों से इस देश में हम पूजते आ रहे है। लोग अपने घरो में माता की स्थापना करते है नौ दिन नियम, संयम के साथ उनका पूजन, आवाहन यशोगान करते है, अष्टमी में कन्याओ को बुलाकर उनका पूजन कर उन्हें भोजन कर यथाशक्ति दक्षिणा दे उनका आर्शीवाद प्राप्त करते है।
सच बोलू तो हमें माँ की पूजा, यज्ञ , हवन, मंत्र, कन्या पूजन इत्यादि ढकोसला लगता है .....
अरे जो जो देश सदियों से स्त्री को पूजता आ रहा है उस देश में स्त्री को पुरुषों के बराबर स्थान क्यों नहीं?
क्यों नहीं आज एक औरत आजाद है देर रात्रि स्वतंत्रता से आने - जाने के लिए?
क्यों लड़कियों को संसार में आने से पहले ही मार दिया जाता है?
क्यों सिर्फ कन्या का पिता ही विवाह में गृहस्थी के सामान देने के लिए बाध्य है जबकि दोनों पक्ष ही नव दम्पति को दांपत्य जीवन में प्रवेश करवाते है ?
क्यों एक स्त्री को सिर्फ एक स्त्री के रूप में न देख कर बहु- बेटी के रूप में देख विभाजित किया जाता है?
अरे जो जो देश सदियों से स्त्री को पूजता आ रहा है उस देश में स्त्री को पुरुषों के बराबर स्थान क्यों नहीं?
क्यों नहीं आज एक औरत आजाद है देर रात्रि स्वतंत्रता से आने - जाने के लिए?
क्यों लड़कियों को संसार में आने से पहले ही मार दिया जाता है?
क्यों सिर्फ कन्या का पिता ही विवाह में गृहस्थी के सामान देने के लिए बाध्य है जबकि दोनों पक्ष ही नव दम्पति को दांपत्य जीवन में प्रवेश करवाते है ?
क्यों एक स्त्री को सिर्फ एक स्त्री के रूप में न देख कर बहु- बेटी के रूप में देख विभाजित किया जाता है?
यूँ तो हमारी सरकारों ने कागजी रूपों में स्त्री की दशा सुधरने के लिए बहुत प्रयास किया है, दहेज़ अधिनियम बना, घरेलु हिंसा अधिनियम बना। पर क्या मात्र अधिनियम बना देने से सामाजिक परिवेश या सोच को बदला जा सकता है ? कानून एक दंडविधान प्रक्रिया है। हमें नहीं लगता कि एक मानसिकता या सोच को बदलने के लिए कोई अधिनियम कारगर होता है अगर होता तो स्त्री के प्रति होने वाले अपराधो कि संख्या में साल दर साल कमी होती जाती ...........
केवल हम, आप, परिवार समाज मिलकर इस दोहरी मानसिकता से बाहर आ सकता है बस जरूरत है दृढ इक्षाशक्ति की। एक परंपरागत सोच को बदलने की ................
२. पुरुषों से यही अपील है कि दुल्हों की मण्डी में अपनी बोली मत लगवाइए। अरे खुद को बेचने में थोडी तो शर्म करिए।
३. स्त्रिया भी स्त्रियों को मान दे, प्यार दे, सम्मान दे तथा घर और समाज में होने वाले अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाये।
४.अपनी बेटियों को स्वावलंबी , निर्भीक और मजबूत बनने में मदद करें ।
जिस दिन हमारी सोच में परिवर्तन आएगा और हम स्त्रियों को कमजोर नहीं बल्कि ताकतवर बनाकर बराबरी का मुकाम देंगे वही सच्चे अर्थो में देवी पूजा होगी और माँ जगदम्बे भी प्रसन्न होगी।
( कृपया दोहरी मानसिकता , विचारधारा और कर्मो में दोगलापन दिखलाने वाले लोग इस लेख पर प्रतिक्रिया न व्यक्त करें । इस लेख का आशय लेखन कौशल की प्रशंसा पाना नहीं है ...... यदि किसी एक व्यक्ति की भी इसे पढ़ कर सोच में परिवतन होता है और वो इसे अपने जीवन में क्रियान्वित करता है तो हम समझेंगे की हमारा छोटा सा प्रयास सार्थक हुआ। )
सही बात है बराबरी मिलनी चाहिए पूजा हथेली पर रख कर चाटनी है क्या.
ReplyDeletebahut hi sachhi bat ....
ReplyDeletebahut sundar rachan hai
sahi kaha aapne bilkul...
ReplyDeletei agree to it and surely an amasing article to read...
Aapne kaise soch liya ki is tarah ki soch vali aap akeli hain. Jo soch aapko krantikari lag rahi hai us soch ke logon ki sankhya baht hai ur ve kahin age hain. han poore samaj ki mansikta ko badalne me vaqtlagata hai, lekin dheere hi sahi badlav aa raha hai
ReplyDeleteये दोहरी मानसिकता वाले लोग कब समझेंगे कि जब तब वो स्त्री का सम्मान नहीं करेंगे, उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा नहीं देंगे, देवी कभी प्रसन्न नहीं होगीं... आज ज़रुरत है समाज को दृड़ होकर, एकजुट होकर अपनी सोच और अपने नज़रिए को बदलने की... प्रिया सबको पता है इस लेख में लिखा एक एक शब्द सही है... सब तुमसे सहमत होंगे पर समस्या ये है की इस परिवर्तन की पहल कौन करे... कौन आगे आकर इस बुराई के खिलाफ खड़ा हो... सरकार सिर्फ अधिनियम बना सकती है सोच नहीं बदल सकती... उसके लिये हमें, तुम्हें और हम जैसे हज़ारों करोड़ों लोगों को एकजुट होना होगा... हाँ शुरुआत हम अपने अपने घरों से कर सकते हैं...
ReplyDeleteye hamari manasikta ka nateeza hai... hum insaanon (ladkiyon) se buri tarah pesh aayenge & deviyon ki puja karenge... why do we live in extremes... aur ye butparasti band ho, chahe wo statues ka ho ya phir vyaktipujan... insaanon ki tarah hum sab pesh aaye... it's high time we did that
ReplyDeleteAap sab ka shukriya! unka bhi jo log blog par aaye to aur lekh bhi padha aur bina pratikriya vyakt kiya unhe jana pada ......Aaise logon ko bhi naman hai .........aap sab jante bhi hai aur samjha bhi .....to bas apne aas-pass aur ghar se shuruwaat karein aap....waqt jaldi badlein ya der se...use to badalna hai hai.....Intzaar aur sahi
ReplyDeletePuja ka matlab kya hai dikhawe ke liye yah sab kahi se bhi uchit nahi hai..stri ko samaan chahiye adhikaar chahiye bas puja ka naam dekar stri ko kanjor na banaya jaye..
ReplyDeletebadhiya prstuti....badhayi priya ji..
सार्थक पोस्ट !
ReplyDeleteआपके विचार बहुत सुलझे हुए और व्यवहारिक हैं, मैं इनका समर्थन करती हूं।
ReplyDeleteकरवा चौथ की हार्दिक शुभकामनाएँ।
----------
बोटी-बोटी जिस्म नुचवाना कैसा लगता होगा?
priya , lekh to accha hi hai , main aapke vicharo ka aadar bhi karta hoon aur samarthan bhi karta hoon ..
ReplyDeletemujhe painting bahut acchi lagi... kyonki main bhi paint karta hoon and this painting speaks something .. agar aapne banayi hai to kudos...
meri badhai sweekar kare .
regards,
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
Sorry Vijay ji...Ye painting hamari nahi hai...google ke saujany se ise blog par dala hai.....thodi samajh hai bas painting ki shayad.....aapko pasand aayi shukriya!
ReplyDeleteबहुत खूब लेख.
ReplyDeleteWiSh U VeRY HaPpY DiPaWaLi.......
ReplyDeleteagar kisi ki soch pahle se hi aapke jaisi ho to ?
ReplyDeleteसारी बेटियों को पढ्ना चाहिये आपका लिखा।
ReplyDeletebahut sahi likha hai priya...pata nahi hamare desh ki mansikta kab in sab se opar uthegi ...lekh bahut accha laga
ReplyDeletePriya ji,
ReplyDeleteNamaskaar.
Pehli baar aaiya hon aapke blog pai
aur aapki lehni ne prabhavit bhi kiya....
"Stri" ke sandarbh main jo viradhobaash hai uske upar bahut prabhavshali dhang se likha hai aapne...
Ek aur example:
GAYATRI MANTRA STRI NAHI PADH SAKTI??
:(
Khair badalaav avashambhavi hai !!
kudos for flawless post !!
your blog is here to stay !!!
आपके ब्लॉग में सबसे ज्यादा खूबसूरत आपकी प्रोफाइल पर लिखी पंक्तियां हैं।
ReplyDeletebahut hi satik aur hamare samaj ki sachai ko aapne likha hai...maine bhi ek rachna bahut pahle likhi thi wo main yahan likh rah hun...मैं देख रहा था...एक अजीब दृश्य एक परिवार का,
ReplyDeleteवहाँ पसरा मरघटी सन्नाटा,
एक दुसरे से नजरे चुराती आँखे. मैं सोचता हूँ.. ये सन्नाटा क्योँ?
रात ही तो जन्म लिया है इनके घर लड़की ने,
लड़की ने मेरे मन ने दोहराया शब्द,
मैं समझ गया क्यों पसरा है सन्नाटा,
तभी मेरी नजर कमरे की बायीं ओर पड़ी माँ दुर्गे की मूर्ति पर जाती है,
जिसके सामने हाथ जोड़े खड़ी एक औरत माँग रही माँ से एक बेटा,
मैं सोचता हूँ माँ दुर्गा भी तो औरत है,
क्या वह नहीं समझ रहीं बेटा माँग कर किया जा रहा उन्हें तिरस्कृत,
यह कैसी बिडंवना माँ की अर्चना में छुपी है माँ की वंचना...
मैं देख रहा था एक अजीब दृश्य एक परिवार का,
वहाँ पसरा मरघटी सन्नाटा,
एक दुसरे से नजरे चुराती आँखे........
मेरे विचार से यह एक बहुत ही गम्भीर मसला है, जिसके लिए हमारी हजारों सालों की परम्परा जिम्मेदार है। इसमें बदलाव आ रहा है, लेकिन उसे सम्पूर्ण रूप से सामने आने में अभी बहुत समय लगेगा।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
शुक्रिया ;
ReplyDeleteआप शिकायत भी कर सकती हैं ,पूरा हक है आपको l आप कवि स ..की visit की बात कर रहीं हैं या IKO लफ्ज़ से आपका आशय कुछ और है ;स्पष्ट हो तो मैं जवाब दूं .
----कुछ नया नहीं, हज़ारों साल से यह चल रहा है, वेदों में तो महिला रिशिकाएं, मन्त्र रचयिता हैं(saints-writer of verses) हैं----राम ने, क्रष्ण ने,दयानन्द, विवेकानन्द, गान्धीजी आदि सभी महापुरुषों ने समय समय पर महिलाओं की बराबरी, उन्नति व स्वान्तन्त्र्य के लिये कार्य किये हैं। क्यों वेदिक व पौराणिक काल के पश्चात आज तक महिला- महामहिला- नहीं हुई ---वस्तुतः यह स्त्री- पुरुष समस्या न होकर---असंयम, अनाचरण,अनैतिकता,अति-भौतिकवादी जीवन यापन, अपराध , कुक्रत्य, लालच, लोभ की समस्याएं हैं ।
ReplyDelete