Friday, November 13, 2009

चलो कुछ लिख ही देते हैं






मन परेशान है क्यो ? नही पता...हो जाता है कभी-कभी ...... लिखने से थोडा सुकून मिलता है इसलिए लिख लेते हैं। जब खुश होते है तो लिखते है .....जब दुखी होते और जब कन्फ्यूज़ होते है तब भी लिखते है।अच्छा साधन है मन के अंतर्द्वंद को वेब पेज पर छाप दो ....दुनिया बदले ना बदले, नेता सुधरे ना सुधरे, सामाजिक विकृतियाँ टस से मस हो ना हो, कोई दूर हो या पास आए, शेयर मार्केट में नर्मी हो या गर्मी .....मार्केट में नये प्रॉडक्ट का लॉंच हो या फिर बॉलीवुड की न्यू रिलीजस.......सब मिलेगा हम ब्लॉगगेर्स की दुनिया में आपको ........की फ़र्क पैंदा है । इस कुंठा को कहीं न कही तो निकालना ही है। कोई रूठे तो रूठे कोई छूटे तो छूटे। मन की बात कह दी ....पढने वालो ने टिपण्णी थपथपा दी .....जी हल्का हुआ ... किसी ने हमको पढ़ा /सुना और शायद समझा भी।


पर आज कोई भी टॉपिक नही समझ में आ रहा है.....ख्यालों ख्वाबों की दुनिया के बारे में बात करने का मन नही है......दिमाग़ है कि उसमे सवाल ही सवाल है.....जवाब बहुत ढूँढा कभी मिले ही नही... और नाहीं मिलने की उम्मीद है। किस मसले पर लिखे?


सुना है की भारत एक डेमॉक्रेटिक कंट्री है ........नेताओं को लगता है कि डेमॉक्रेसी जनता खुशी नही बल्कि मजबूरी है.......सुयोग्य उम्मीदवार पार्टी में शामिल नहीं होते या फिर किये नहीं जाते,अब गंदे लोगो से कम गंदो को चुनने का चुनौतीपूर्ण कार्य भी जनता को ही करना है। नेता जी को अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है. एक बार जीत कर मैदान में जो आये तो आगे- पीछे की सभी नस्लों का भविष्य सुधार देंगे।


इलेक्शन के समय एक -एक वोट की कीमत समझाई जाती है......करोड़ो खर्च हो जाते है प्रचार में....और लोग कन्विन्स भी होते है...........चले जाते है पूलिंग बूथ तक.........बटन दबाकर उंगली पर एक दाग लेकर चले आते है.......वही दाग भारतीय संविधान पर एक बड़ा धब्बा बनकर दिखने लगता है.......अब धब्बो की बात चली है तो कुछ धब्बे है जहन में हैं ...लिख ही देते है...........तहलका धब्बा, चारा धब्बा, ताज कॉरिडोर धब्बा और अभी हाल ही में हुआ ....मधु रूपी कोड़ा ......ब्रेकिंग न्यूज़ है भाई........पुराने धब्बे मिटे हैं क्या? जो ये मिटेगा ........अगली बार तो कॅबिनेट में आकर कोई बड़ी मिनिस्ट्री मिलेगी......पॉपुलर जो हो गये है.....कोई सर्फ एक्स्सेल है नही मार्केट में जो इन धब्बो को सॉफ करें..............अगर ये धब्बे कॉर्पोरेट हो गये तो हाल-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा? अर्.....रे राजठाकरे को कैसे भूल सकते है हम सब......भारतीय संविधान के साथ उनकी गुल्ली-डंडा खेलने के आदत पुरानी है .......और शानदार मोड़ तो तब है जब केंद्र कोई ठोस कदम न उठा कर ...एक औपचारिकता पूरी करता है। यू० पी० की चिंता करने वाले रोयल ब्लड राहुल जी चुप्पी साध लेते है.


छोड़ो जी.......क्या करना है हमको...बस अभी याद आ गया... एक कामन मैन है ....उसी की तरह पैदा हुए है .......जी रहे है और मर भी जाएगे.... ये सब लिख दिया ताकि लोगों को लगे हमको भी थोडी चिंता है ... देश की, समाज की। कुछ कर पा नहीं रहे है, छटपटा रहे है ......तो क्या करे लिख ही रहे है. जब कॉलेज में थे तब दोस्तों के साथ बातों का दौर चलता तो ऐसा लगता कि हम में से कुछ तो सिस्टम बदलने के लिए ही पैदा हुए है ...... सिस्टम तो जस का तस रहा ....... हम सब का ही सिस्टम बदल गया......जिंदगी की जरूरतों में.



ये दुनिया वैसी क्यो नही है जैसी हम चाहते है....लोग वैसे क्यो नही होते जैसे दिखते है ? क्यो लोग सच बोलने से कतराते है..? क्यो झूठी ज़िंदगी जी कर गौरान्वित होते है? अर् रररर रे कुछ तो ऐसे है जो आप से सीख कर आप ही कोसिखाते है. खुल कर तारीफ़ भी नहीं कर सकते और विरोध भी..... और दावा सुनिए इनका ये तो बिल्कुल सीधे साफ़ सच्चे है ........चलते- चलते कुछ सवालों के बीच छोड़े जा रहे है आपको... जो जवाब मिले तो बताइयेगा हमको भी .




क्यो कुछ सवालों के जवाब नही होते?
क्यो लोग नेकदिल और साफ़ नही होते?
क्यो चेहरों पर मुखौटे होते है?
कुछ तो हमारे अपने ही झूठे होते है?
क्यो कुछ रिश्ते जीवन पर बोझ बन जाते है?
क्यो कुछ लोग बिन रिश्ते साथ निभाते है?
क्यों कोई बिन स्वार्थ कुछ नही करता?
क्यों कोई सम्बन्ध निस्वार्थ नही बनता?
क्यों कोई बेमतलब अच्छा लगता है?
इतना के उसका झूठ भी सच्चा लगता है.....
क्यो छलरहित और अच्छे होने पर धोखा मिलता है?
क्यो ज़िंदगी में पैसा भगवान बन जाता है?
क्यों पैसे के पीछे इंसान बेईमान बन जाता है?
क्यो मज़हब के नाम पर लड़ाई होती है?
क्यो भ्रष्ट-गंदे लोगो के हाथ सत्ता होती है ?

क्यो नही कोईदुनिया में सच्चा मिलता है ?
क्यो कुछ लोगों के शब्दो में मर्यादायें नही है?
क्यो कुछ लोगों के आचरण में सीमायें नही है?
क्यो नही हम सब बदल सकते?
एक सच्चा अच्छा संसार रच सकते........
क्या सच के साथ जीना वाकई मुश्किल है?
तो फिर सच क्या है ?
जीवन
मृतु
या फिर
कुछ और ?


28 comments:

  1. करते कहते सोचते एक जबरदस्त रचना लिख गईं आप तो....अब क्या जबाब की तलाश अब भी बाकी है? :)

    अच्छी पोस्ट!!

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  2. bahut shor sunte the,
    pehloo men dil kaa,
    jo cheeraa to katraa-e-khoon hee niklaa .

    aur jab tak wah katraa hai, aadmee jindaa hai, tabhee tak !
    galat sawaalon ke koee jawaab naheen ho sakte. koee bhee insaan, doosron ko kaise badal saktaa hai ? aur aap shaayad yahee ummeed kar rahee hain . aur har koee yahee ummeed kartaa hai .
    kyaa yah mumkin hai ?
    aadmee apne-aapko shaayad badal saktaa hai, aesaa mujhe lagtaa hai.
    vaise main to is baare men bhee bahut maayoos hoon.
    aapkee post padhne men mazaa zaroor aaya. shukriyaa .

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  3. बहुत खूब ,। लाजवाब रचना

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  4. hi priya ...kansh in sab savalo k javab mil paate to kitna accha ho...jis bechani me dil ne ye sab kuch keh dala ...agar use ye sakoon kaheen mil jaye to socho vo kitna kuch keh sakta hai ...ye saaf dil hai kabhi ayeena dikhata hai.. kabhi sapno ki duniya...par is duniya ki hakikato se to ye bhi katrata hai.....ab dekho .tumhari bechainiya padhkar ye bhi bechain hoga...bematlab sochega ...ab 1 hr tak udhed bun lagi rahegi man me ...par fir bhi javaab to milne se gaye....par savaal jaroor jahan me bane rahenge ...

    kaans!tum ye saavalo ki tarah javaab bhi hamare sath bat pao

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  5. DIL JAB MAAYUS HOTA HAI ... MAN MEIN VEDNA CHIPI HOTI HAI .... VYAVASTHA KE PRATI GAHRA KSHOBH MAN MEIN UTHTA HAI ...... VITRASHNA HI HO JAATI HAI SAMAAJ SE .... BOJH LAGNE LAGTAA HAI APNA AAPA BHI .... AISE MEIN ITNI KAALJAYEE RACHNAAON KI UTPATTI HOTI HAI .....

    BAHOOT KHOOB LIKHA HAI AAPNE ... MAN KI PEEDA KO SHABDON MEIN UTAAR DIYA HAI ...

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  6. Vinay Ji

    आपकी प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया !

    आपने लेख ठीक से नहीं पढ़ा ? …लेख में बदलाव की बात की है …..लेकिन ये बदलाव विचारधारा और सोच का है ……..किसी व्यक्ति विशेष का नहीं …..

    बदलाव सकारात्मक हो तो सृजन करते हैं और नकारात्मक हो तो विध्वंस .

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  7. वाह! काश आपको टॉपिक कभी न मिले और न ही दिमाग में उमड़ते घुमड़ते सवालों के जवाब.. तभी तो इतनी गहरी पोस्ट सामने आएगी ना..

    हैपी ब्लॉगिंग

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  8. क्यो कुछ सवालों के जवाब नही होते?
    जवाब हर सवाल के होते हैं या तो हम उन्हें ढूँढना नहीं चाहते या फिर जान के भी अनजान बने रहना चाहते हैं

    क्यो लोग नेकदिल और साफ़ नही होते?
    हर कोई एक सा नहीं होता... काटों के साथ फूल भी होते हैं

    क्यो चेहरों पर मुखौटे होते है?
    लोग असलियत जानना ही नहीं चाहते इसलिए मजबूरी हों जाती है कभी कभी ना चाहते हुए भी

    कुछ तो हमारे अपने ही झूठे होते है?
    हाँ कभी कभी... हम ख़ुद भी कितने सच्चे होते हैं ?

    क्यो कुछ रिश्ते जीवन पर बोझ बन जाते है?
    रिश्ते बोझ नहीं होते... लोग बदल जाते हैं

    क्यो कुछ लोग बिन रिश्ते साथ निभाते है?
    अच्छाई अभी ख़त्म नहीं हुई है दुनिया से

    क्यों कोई बिन स्वार्थ कुछ नही करता?
    हर कोई एक सा नहीं होता... और हम ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्यूँकि हमारे पास ऐसे लोग हैं जो बिना स्वार्थ के हमारे लिये कुछ भी कर सकते हैं और करते हैं

    क्यों कोई सम्बन्ध निस्वार्थ नही बनता?
    ज़रा गौर से सोचो इस बारे में... अपेक्षाएं हमारी भी कम नहीं होती किसी भी रिश्ते से

    क्यों कोई बेमतलब अच्छा लगता है?
    दिल का मामला है इसमें हम कुछ नहीं कह सकते

    इतना के उसका झूठ भी सच्चा लगता है.....
    हाँ वो तो है :-) झूठ हों या सच पर फीलिंग बड़ी अच्छी होती है

    क्यो छलरहित और अच्छे होने पर धोखा मिलता है?
    धोखा इसलिए नहीं मिलता की आप अच्छे हों... इसलिए मिलता है की सामने वाला बुरा है

    क्यो ज़िंदगी में पैसा भगवान बन जाता है?
    भगवान को भगवान भी हमने ही बनाया था और आज पैसे को भी भगवान हमने ही बनाया है

    क्यों पैसे के पीछे इंसान बेईमान बन जाता है?
    जब पैसे को भगवान बना ही दिया तो फिर बेईमानी कैसी वो तो भक्ति हुई ना :-)

    क्यो मज़हब के नाम पर लड़ाई होती है?
    सब राजनीती है भैया

    क्यो भ्रष्ट-गंदे लोगो के हाथ सत्ता होती है ?
    हर कोई गन्दा है यार किसे चुने ... इस बार तुम खड़ी हो जाओ इलेक्शन में...

    क्यो नही कोई दुनिया में सच्चा मिलता है ?
    ढूंढने से तो भगवान भी मिलते हैं...

    क्यो कुछ लोगों के शब्दो में मर्यादायें नही है?
    ज़ुबां है यार कभी फिसल ही जाती है ... क्या करा जाये :-)

    क्यो कुछ लोगों के आचरण में सीमायें नही है?
    जब इंसानियत की ही मरियादायें नहीं रहीं तो क्या शब्दों की मरियादायें और क्या आचरण की सीमायें

    क्यो नही हम सब बदल सकते?
    बदलने की ठान लो सच्चे मन से तो सब बदल सकता है ... एक कोशिश तो कर के देखो


    एक सच्चा अच्छा संसार रच सकते........
    संसार तो बहुत बड़ी बात है अपने आस पास ही हँसी ख़ुशी से रह लें वही बहुत है

    क्या सच के साथ जीना वाकई मुश्किल है?
    नहीं इतना भी मुश्किल नहीं है ... बस विश्वास को डगमगाने नहीं दो

    तो फिर सच क्या है ?
    जीवन
    मृतु
    या फिर
    कुछ और ?

    सच है आज, अभी, ये पल... यही जीवन है... इसे खुल कर जियो... जी भर जियो ... कल किसने देखा है... मृत्यु के बाद क्या होता है किसे पता
    और जो पता नहीं वो सच कैसे हो सकता है ...

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    1. Murde ki Abhilasha..........By Pradeep
      मरना था तो मैं मक़बूल हो चला ,
      किसी रोज़ मेरी कब्र पर रोकर कोई हलाकान जी आराम पा जाएगा,
      मज़बूत इरादे वाले भी देखकर मेरी हालत चाहत के शुक्र तलाशैंगे,
      खामख्वाह जीने वालों पर तो दुनिया वाले भी लानतें मलानतें भेजेंगे,
      पर गिन कर बदले लूँगा जीने वालों से जिस दिन वोह मेरे पड़ोसी बनेंगे,
      तब पुछुंगा इन कामकाजी बंदो से,
      कि बड़ी फुर्सत मैं मरे हो यार,
      वरना मिलते ही कहते थे,
      समय की कमी ऊपर से काम का भार, ......... GOOD NIGHT JI ...........RIP

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  9. Hey Richa! Nice response yaar. ........I'd written all that I was feeling very down .......without any reason... haan jaankar bhi ye jawaab nahi dhoodh paye ham us waqt .........But Im really very happy that I've a friend like you. Your responses energise me

    Thanks.

    regards,

    Priya

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  10. wakai wese to saare hi sawaal wajib hain magar jaisa ki aapne hi kahaa hai ke saare sawaal ke jawaab nahi hote ,... magar mujhe jahan tak lagta hai saare hi sawaal ke jawaab hote hai ... magar apne apne nazariya ke mutaabik log use dhaal lete hain... aapke sare hi sawaal nihswarth bhaav ke hain... aur iske liye nihswarthata jaruri hai magar baat to yah hai ke aaj ke samay me koi nihswartha nahi aur isliye shayad saare sawalon ke jawaab nahi hote....

    sundar rachanaa priya

    arsh

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  11. well i am reading blog of a right-thinking indian.

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  12. ... बेहतरीन अभिव्यक्रि !!!!

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  13. Hiii Nice post ... nicely written and nicely expressed ... keep up the gud wrk !!!
    Yaad aa gaya kuch ...

    आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
    पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।


    एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,
    आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।


    अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,
    यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।

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  14. chalo itna ina acha lekh padhne ke baad hum bhi "kuch likh he dete hain"

    adbhut...vandaneey....

    cheers!
    surender
    http://shayarichawla.blogspot.com/

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  15. पर ये भी है कि अगर सवाल नहीं पूछेंगे तो जबाब भी नहीं मिलेगा.

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  16. मेरे ब्लॉग पर बहतरीन कमेन्ट करने वालों में , आपका शुमार करती हूँ .शुक्रिया .
    और आपके सवालात तो बहुत ही सार्थक लगे ,चलो' ऐसे ही कुछ लिख दिया करो '.

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  17. आपके सवालों के जबाब बड़े सीधे हैं और सदियों की सच्चाई हैं .
    जबाब ये है की हम इन्सान हैं बस इन्सान . ऐसे ही रहे , हैं,और रहेंगे . हाँ कुछ अलग भी होते हैं .

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  18. antar dwand ki sundar prastuti
    avam rachna bhi acchi lagi
    abhar

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  19. jawabon ki jugat jaari hai..
    sawal hai ki thamte hi nahi...

    aisa aksar hota hai, man mein ajeeb si uthal puthal rehti hai..man to karta hai ki pannon par sab kuch udel dein.. par aisa mumkin nahi ho pata ..pata nahi kyun ?

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  20. क्योंकि सफ़ेद काले के ऊपर ज्यादा सफ़ेद दिखता है
    क्योंकि गम के बाद ही खुशी की अहमियत ज्यादा होती है.

    कभी अजनबी सी, कभी जानी पहचानी सी, जिंदगी रोज मिलती है क़तरा-क़तरा…
    http://qatraqatra.yatishjain.com/

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  21. aaj dobara padha is rachna ko aapki... "kyun kuch log rishte ke bina saath nibhaate hain ?" iska jawab hum bhi dhoond rahe hain ....

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  22. priyaji aur richaji.... aap dono ka sawal-jawab vakai main lazwab hai.priyaji,aapne insaan aur samaj ke ek paksh ko dikhaya hai,shayad ye aapka aur shayad hummen se bahuton ka anubhav aur sawal ho sakta hai.richaji,aapka jawab bhi ekdam sateek hai,sab log ek hi tarah ke nahin hote hain..apna apna falsafa hai jindagi ka...dono ko badha...

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  23. यह सवाल सबके मन में उठते हैं ..पर सब ही तो मुखौटा लगाये होते हैं उत्तर कौन दे ?

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  24. ये सवाल तो हर एक नागरिक के दिल में हैं और अनुतरित हैं हमेशा.
    सुन्दर प्रस्तुति.

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खामोशियाँ दिखती नहीं सिर्फ समझी जाती है,इन खामोशियों को टिपण्णी लिख आवाज़ दीजिये...क्योंकि कुछ टिप्पणिया सोच के नए आयाम देती है....बस यूँ न जाइए...आये है तो कुछ कह के जाइए:-)